Friday, March 26, 2021

ख़ुश नसीब है हम कि ध्रुव जैसे लोग जब तक थे तो देश की सेवा करते थे, अब नहीं है तो कभी-कभी कहानी का पात्र बन कर याद दिलाते है कि हमने क्या तय किया था।



कहानियाँ प्रभावित करती है, मुश्किल होता है कभी-कभी उन सभी कहानियों से मुँह मोड़ पाना जिनके साथ लगता है हम जिये है। कुछ कहानियाँ हम कभी नहीं भूलते ख़ासकर वो, जिनके पात्रों को हम परिवार का हिस्सा समझने लगते है। ऐसे न जाने कितने ही शख़्स है फिर चाहे वो कारगिल में शहीद हुए कैप्टन विक्रम बत्रा हो या पोखरन में सैन्य अभ्यास के दौरान शहीद हुए मेजर ध्रुव यादव। ऐसे पात्रों का पाठकों से जुड़ना सही भी है जो प्रेरित करते है।

मेजर ध्रुव यादव की माँ का ख़त पढ़ा, उन्हें गर्व से ज़्यादा खेद है कि वो अपने बेटे से वो सब बातें न कह सकी जो वो जनता था। उनकी तमन्ना थी कि एक बार वो सभी बातें उसके सामने कहे। ख़ुश नसीब है हम कि ध्रुव जैसे लोग जब तक थे तो देश की सेवा करते थे, अब नहीं है तो कभी-कभी कहानी का पात्र बन कर याद दिलाते है कि हमने क्या तय किया था। हम ध्यान रखें कि सच से दूर रहना अपने आपको अंधेरे में रखने के समान है क्यूँकि ‘काश’ की इच्छा पूरी नहीं होती।

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21-02-2020
Rahul Khandelwal

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