क्या 'सामाजिक और राजनैतिक परिस्थितियों द्वारा निर्मित वातावरण की क्षमता' 'मनुष्य के अंतःकरण की क्षमता' से अधिक होती है, जिसके परिणामस्वरूप वो 'सत्य और असत्य' के बीच अंतर और चुनाव करने जैसे फैसलों का निर्णय करता है? दोनों विकल्पों में से किस विकल्प में 'धर्म' का तत्व अधिक मौजूद है अथवा नैतिक मूल्यों का हनन नहीं है? किस विकल्प का सहारा लेकर (या कौन सी राह चुनकर) आप सत्य के अधिक निकट पहुंच सकते है?
जिस 'सत्य' की गवाही आपका अंतर्मन देता है, क्या आपके द्वारा वो चुना गया 'सत्य' हर प्रकार के बंधन से मुक्त है? क्या वो तलाश किया गया 'सत्य' किसी भी प्रकार की परिस्थितियों का परिणाम नहीं? क्या उसकी निर्भरता सिर्फ़ आप तक सीमित है?
हर समय की परिस्थितियां अपने समय के 'हित और अहित' को परिभाषित करती है जिसका सीधे तौर पर प्रभाव उस समय में रह रहे लोगों के द्वारा चुने गए 'सत्य और असत्य' पर पड़ता है। लेकिन हर समय में लोगों का एक ऐसा वर्ग भी मौजूद होता है जो 'सत्य और असत्य' का चुनाव करते समय हर प्रकार के बंधन से मुक्त होने की जद्दोजहद में लगा होता है, जो निरंतर अपने अंतःकरण के अस्तित्व को बचाने में संघर्षरत रहता है।
आप किस पाले में खड़े है? विचार कीजिए।
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18-10-23
Rahul Khandelwal
#Akshar_byRahul
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