Saturday, August 23, 2025

स्व-बातचीत

 


कभी-कभार हमारे विचार 'स्थान और समय' के मोहताज नहीं रहते, ऐसा शुरू से होता है या फिर यह प्रक्रिया भी मनुष्यों द्वारा किए गए किसी अभ्यास का परिणाम होती है, इसे समझने की कोशिश भी जारी है। इसीलिए शायद यही वजह है कि विचार अब आने से पहले दस्तक भी नहीं देते।


वे यादें क्या है जो निरंतर बनी रहती है?

मुझे लगता है यादें मनुष्य द्वारा उन लम्हों की झलकियों के सहारे ख़ुद के उन हिस्सों को फिर से जीना भर है जो उसके अस्तित्व की परिभाषा को पूरा करते है और जिसकी खोज ख़ुद उसके द्वारा की गई उसके अतीत में दर्ज है।


यादों में दुःख क्या है?

इस बात पर खेद जताना कि खोज किए गए अपने उन हिस्सों को ऐसे लोगों संग साझा किया गया जिन्होंने उन हिस्सों से निर्मित होने वाली उसकी अस्तित्व की परिभाषा के साथ छेड़छाड़ करने की चेष्टा की हो न कि इस बात पर खेद जताना कि वे लोग आज उसके वर्तमान का हिस्सा नहीं।


क्या अतीत में दर्ज घटनाएं वर्तमान में मनुष्य को दुःख दे सकती है?

मुझे लगता है अतीत से जुड़े दुखदायी लम्हें मनुष्यों को उसके वर्तमान समय में पीड़ा नहीं देते बल्कि मनुष्य आपने वर्तमान समय में एक काल्पनिक समय को गढ़ता है जिसमें वह उन घटनाओं का दुःख के रूप में सामना करता है।

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23-08-2025

Rahul Khandelwal 

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