काश मेरे बस में उन सभी खूबसूरत लम्हों को भी कैद करने की क्षमता होती जिन्हें मैं कभी ख़ुद के द्वारा ख़ुद पर चढ़ाई गई तमाम बेबुनियाद परतों की वजह से, करने में असफल रहा। कृत्रिम और झूठ से बनी परतें जिनका आधार भीतरी मन के तत्वों की गवाही ना होकर बाहरी तत्त्व की अधिक होता हैं और जिसकी बनावट का परिणाम भीतरी और बाहरी तत्त्व, दोनों कारकों के बीच के संघर्ष से होकर पैदा होता है। ऐसे में आपका अवचेतन मन उन बाहरी तत्वों को कब और कैसे भीतरी मन पर हावी होने की इजाज़त देता है, आपको ख़बर भी नहीं होती। और चौखट पर दस्तक जिस वक्त होती है, तो बाहर आपका इंतज़ार सिर्फ़ “पश्चाताप” कर रहा होता है, तब तक काफी देर हो चुकी होती है।
कभी-कभी परिस्थितियां ऐसी होती है कि एक ही समय और स्थान में दो लोगों की उपस्थिति, उन्हें हर बार बातचीत करने का मौका नहीं देती। ऐसी स्थिति पैदा होने पर इंसान अभिव्यक्ति के तमाम तरीके तलाशता है, मैं लेखन का चुनाव करता हूं। आज आपसे कुछ कहने के लिए कर रहा हूं मां।
मां, आपने मुझे कोई धार्मिक किताब का सहारा लेते हुए सत्य–असत्य, सही–गलत के बीच फ़र्क करना नहीं सिखाया है, परवरिश की प्रक्रिया बिलकुल भी औपचारिक नहीं रही। इस सब के बावजूद भी आपसे ख़ूब सीखा है, बहुत कुछ अभी भी शेष है।
अपनों से दूर कोई नहीं होना चाहता है, मजबूरियां इंसान को विवश कर देती है। जब मैं आपसे दूर ना होकर आपके पास होता हूं तो इस अनुभूति से ख़ुद को घिरा हुआ पता हूं कि मेरा मन आपकी मौजूदगी से एक प्रकार की मदद हासिल कर रहा है कि मैं सच और झूठ में फ़र्क कर पाता हूं। आपकी मौजूदगी मुझे सत्य-असत्य के बीच के फ़र्क को समझने में मदद करती है मां। शायद इसीलिए लोग अपने माता-पिता की तस्वीर को अपने बहुत ही निकट रखते भी है। सकारात्मक रूप से देखें, तो एक प्रकार से प्रमाणीकरण और वैधता प्राप्त करने के लिए ऐसा किया जाता है।
जो हमें मन से प्रिय होते है, उनके साथ होने से आप
अपने चारों ओर मौजूद संदेहों को मिटता हुआ देखते है और इस एहसास से भी ख़ुद को अवगत कराने में कामयाब हो पाते है कि वो एक-एक संदेह आपके बाहर
नहीं, बल्कि भीतर मौजूद है। आप बाहर तलाशने की
बजाए भीतर झांक रहे होते है; देखते है कि अब परतें अपना स्थान छोड़ रही है और भीतरी मन
और भी अधिक स्पष्ट होता हुआ दिखाई पड़ता है।
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04-01-2024
Rahul Khandelwal
In the picture, Maa-Papa looking at the sky. 🌸
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