Sunday, November 5, 2023

चीखते सवाल

 


अनसुनी गुहार, जिसे सुनकर, नज़रंदाज़ कर देने की हमें आदत हो गई है।

"अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आपको कई सारे माध्यम देती है मन की परतों के नीचे दबे अलग-अलग ख़्यालों को व्यक्त करने की। मैं लेखन का चुनाव कर लेता हूं। इस कविता में हज़ारों ज़िंदगियां खो जाने के कारणों की तलाश करती, हज़ारों नन्हीं ज़ुबानों को व्यक्त करने की एक छोटी से कोशिश की गई है, जो उन तमाम समस्याओं को जिनके जनक वो ख़ुद नहीं होते है, लेकिन उनसे होने वाले परिणामों का भागीदार ना चाहते हुए भी वो ज़रूर बन जाते है। और जब अपनी उम्र के अनुसार छोटे स्तर के ज्ञान के आधार पर समस्याओं से होने वाली मुश्किलों को झेलते हुए उसके होने का कारण सवालों के रूप में पूछते है, तो बड़े स्तर वाले समूह ऐसी स्थिति में उनके समक्ष, अपने स्तर के ज्ञान के आधार पर इकट्ठा किए गए कारणों को जवाब के रूप में पेश कर देते है।"

उसका इतिहास, राजनीति, भूगोल, धर्म और समाज

उसके अपने

और नज़दीक के

दस मकानों तक सीमित है


जहां उसने

अपने और औरों के साथ

प्रेम, आदर और सहज भाव से

रहना सीखा है


इस उम्र में भी

वो अपने “इस छोटे-से देश” में

जिस किसी को जानता(ती) है

हर किसी के प्रति

ज़िम्मेदारी का भाव रखता है


वो अपने समर्पण को

मोल-भाव कर

तराज़ू में नहीं तोलता(ती)

व्यसकों की तरह


उसे मालूम नहीं था

कि उसके अनुसार परिभाषित देश को

उसमें रहने वाले

बेकसूर उसके अपनों को

युद्ध के दौरान

जाने या अनजाने में

तबाह किया जा सकता है


और जब वो असंख्य लाशों के बीच

अपनी मां, पिता, भाई, बहन और दादी के

ना होने का कारण पूछता(ती) है

तो जवाब में

थमा दिया जाता है

उसके नन्हें हाथों में

देश का इतिहास, राजनीति, भूगोल, धर्म और समाज


___________________

05-11-23

Rahul Khandelwal

Click on this link to listen my poem on YouTube.

Published in "KRITYA Poetry Journals." Click on this link and scroll down to the bottom.


Notes:

1. The poem is dedicated to all those innocent  children of both sides who are dying and losing their loved ones in Israel-Palestine conflict.

2. The picture is taken from internet.

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