Wednesday, February 26, 2025

एक रिश्ता: माँ, स्मृति और सत्य


तुम्हारा स्मरण

छाया तुम्हारी

पलकें झपकने पर उस संसार में दिखती तुम्हारी छवि

मेरी अंतरात्मा के अस्तित्व का

कराती है एहसास मुझे


जो था कहीं धुंधला अब तक

दिखने लगता है स्पष्ट

मिटने लगती है स्थितियां कश्मकश की

दिखलाई पड़ने लगती है एक राह

जीवन के चौराहे पर खड़े मुझ एक मुसाफ़िर को

देर है करने की स्पर्श

एक स्मृति को तुम्हारी बस


कृत्रिमताएं छोड़ने लगती है अपना स्थान

उभरने लगता है सत्य

तुम्हारी एक ही याद से


तुम्हारी स्मृति का होना

मानो जैसे

भीतर निवास करते ब्रह्म से मिलना है माँ 

________________________

24-02-2024

Rahul Khandelwal 


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