तरह-तरह की भ्रांतियों से
घिरा रहता है उनका औदा
कितनी असल, कितनी निर्मित है ये भ्रांतियां
दूर खड़ा वो दर्शक नहीं जानता
शायद निर्माण किया है मनुष्य ने इनका भी
बाकी धारणाओं की भांति ही
ताकि ना जा सकें कोई भी उनके समीप
परिणामस्वरूप बन जाएं एक और नई श्रेणी इंसानों के बीच
जिसे बनाता आया है मनुष्य अनंत काल से ही
फिर भी चाहा है उन्होंने इन सबके बीच भी
मिलन सिर्फ़ अपनी ही अंतरात्मा से
भीतर घोर अंधेरे में
निवास करती उस शांति से, अमन से और “मैं” से
जहां छिपने के लिए नहीं बचती कोई भी जगह
किसी भी भेद के लिए
जहां समाप्त हो जाता है
असल और निर्मित का सवाल
बचता है संबंध सिर्फ़ 'ब्रह्मन् और आत्मन्' का
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07-06-2024
Rahul Khandelwal
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