आंसू बहाना बंद कर दिया है
यह सब कितना असामान्य है
कि हार रही मनुष्यता को देख
सभी चैन की नींद कैसे सो पाते है?
क्या तुम सो पाओगे चैन से
गर तुमको जान पड़े कि
कई माएं खो चुकी है
अपनी बेकसूर संतानों को?
और यह सब जान कर भी
अब तुम्हारी ख़ुद की आंखों ने भी
आंसू बहाना बंद कर दिया है।
जवाब दो, क्या ख़ुद में होते हुए
इस बदलाव को देखकर भी
तुम्हें ख़ुद से डर नहीं लगता?
क्या तुम्हें डर नहीं लगता यह सब सोच कर भी
कि ख़ुद के सामने तुम देख रहे हो
असामान्य को सामान्य में तब्दील होते हुए?
बोलो, इतने बेबस और बुज़दिल कैसे हुए तुम?
जवाब दो।
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07-03-24
Rahul Khandelwal
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Published in "KRITYA Poetry Journals." Click on this link and scroll down to the bottom.
Note: This poem is dedicated to all the innocent children who have died so far in the Israel-Palestine conflict.
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