दादी, बात करना चाहता हूं आपसे कुछ आज-
गांव से आपके कई कोसों दूर
एक अम्मा, हमउम्र आप ही की
रहती है यहां, महानगर में भी
आदतें देख जिनकी कुछ
आ जाया करती है याद आपकी मुझे।
जब-जब नमस्ते करता है कोई आपको
अपनी शैली अपना
देती है आशीर्वाद आप उसे
कहती है और फिर-
“जीती रहो बेटी, तेरा बेटा जीता रहो,
तेरा सुहाग बणा रह,
भगवान तेरा परिवार बणाओं रखें।”
दादी! क्या आपकी मां और उनकी मां भी
ऐसे ही आशीष दिया करती थी
शीश झुकाने वालो को?
किस संस्कृति का है ये हिस्सा?
आशीर्वाद जिसमें
अभिवादन करने वाले के साथ-साथ
दिया जाता है उसके परिवार को भी
और, सभी की बरकत की
की जाती है कामना।
काश! मैं जान पाता
पीछे छिपे इतिहास को इसके
वर्तमान में अब जो
ओझल हो गया है कहीं।
सामग्रियों के तो मिल जाते है
पुरातात्विक अवशेष भी
लेकिन उत्खनन इनका
है संभव नहीं।
“अम्मा राम राम, अम्मा नमस्ते”,
कहता हूं जब उन्हें, मैं भी यहां
तो देती है आशीर्वाद वे भी
कुछ इसी तरह से
“राम राम भाई,
भगवान तेरी नौकरी लगावे,
तू बारिस्टर बने,
भगवान तेरे मां बाप का जोड़ा बणाओं रखें।”
वो भी भांति आप ही की,
सीढ़ियों पर बैठ कभी-कभी
गुनगुना लिया करती है कोई गाना।
मैंने अक्सर देखा है-
घर-परिवार में जब
झगड़ जाया करते है व्यसक
तो एकांत में कहीं किसी कोने में
गुन-गुना लिया करते है वृद्ध
अपनी स्थानीय बोली में एक गीत
मानो इस भाषा में गा, दुःख उनका
हो जाया करता है कुछ हल्का अधिक
बोली नहीं समझ पाता हूं मैं
लेकिन दर्द झलकता है उनकी भावनाओं में
कि जैसे-जैसे वो गीत होता है ख़त्म
उनका दुःख हो गया हो समाप्त मानो जैसे
असल में या ऊपरी मन से, मालूम ये नहीं।
यहां अम्मा वही अपना गीत है गाती
जैसे तुम गाती हो वहां अपना।
दादी, तुम्हें वही गीत क्यूं है पसंद?
क्या इसीलिए कि वो तुम्हारी अपनी ज़बान में है
जिसे धकेल दिया गया है पिछे कहीं अब बहुत दूर
बैठी शीर्ष पर विराज तंत्र-प्रणाली ने धीरे-धीरे
लिए बिना तुम्हारी इजाज़त
और तुम इलज़ाम लगाती रह गई
कि इसे समझने वाले नहीं बचे है अब शेष।
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12.10.2024
Rahul Khandelwal
Note: (छोटे कस्बों, गांवों से आने वाले लोगों के ज़हन में मौजूद वहां से इकट्ठा की गई स्मृतियों की झलकियां कभी-कभार महानगरों में भी अलग-अलग रूपों में दिखलाई पड़ती है। ये कृति प्रयास करती है दो अलग हिस्सों में निवास करती एक जैसी संस्कृतियों के कुछ अवशेषों को जोड़ने का, जिन्हें कुछ ही लोगों के द्वारा सम्भाल कर रखा हुआ है। साथ ही साथ यह कृति पड़ताल करती है उन कारणों का और सवाल रखती है हमारे सामने कि क्यूं उन अवशेषों की परछाई आज धुंधली पड़ती चली जा रही है।)
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