जब वो थोड़ा बड़ा हुआ तो उसे मालूम पड़ा कि हर देश के राजनैतिक बाज़ार में अलग-अलग रंग की चादरें प्राप्त करने का अवसर मिलता है। लेकिन चादरों के चुनाव से पहले उसके स्वरूप को समझने के लिए गहन अध्ययन भी करना पड़ता है, ये उसे नहीं मालूम था। तो समाज में कुछ शिक्षित वर्ग, बुद्धिजीवी, विशेषज्ञों और राजनैतिक तौर पर प्रतिष्ठित लोगों के द्वारा चुने हुए विकल्प को उसने अपना विकल्प बनाया और उसी के अनुसार चुनाव भी किया। 'शिक्षित और प्रतिष्ठित वर्ग' की परिभाषा का कोई एक पैमाना नहीं होता है, हर कोई इसे अपने हिसाब से परिभाषित करता है। तो चुनाव करते समय उसने भी अपनी ही सोची-समझी और गढ़ी हुई परिभाषा को आधार बनाया।
समय के हर दौर में नाना प्रकार की रोशनियों के अनेक माध्यम मौजूद होते है, जो इंसान को उसके भीतर पनप रहे अंधेरे को पहचानने से रोकते है ताकि वो उस अंधेरे को दूर ना कर सकें (मूल सत्य को ना जान सके)। हालांकि उस अंधेरे की पहचान कर पाना हर व्यक्ति के लिए इतना सरल भी नहीं, इसलिए हमारे बीच अच्छे शिक्षकों की मौजूदगी की महत्ता और भी अधिक बढ़ जाती है, जो समय-दर-समय अपने शिष्यों को सही और गलत, सत्य और असत्य के बीच के फ़र्क को स्पष्ट रूप से समझाने के लिए उनके विवेक की चौखट पर आ दस्तक दे दिया करते है, ताकि सही निर्णय का चुनाव किया जा सकें। हालांकि यह भी बहस का विषय है कि सही-गलत और सत्य-असत्य की परिभाषा क्या है। ख़ैर।
तो हुआ यह कि एक दिन उसने भी अपने शिक्षक (गुरु) को उसकी नए रंग की चादर के बारे में बताया जिसके चुनाव की ओर उसका झुकाव अधिक था। दोनों के बीच सवाल-जवाब हुए, थोड़ा विमर्श भी। उन्होंने अपने शिष्य से कहा "कि बतौर किसी भी अच्छे शिष्य का एक विवेकशील विचारक होने के नाते ये कर्तव्य है कि वो राजनैतिक बाज़ार में जाने से पहले किसी एक रंग की ही चादर को खरीदने का निर्णय लेकर प्रवेश ना करें। सही मायने में उसका कर्म हर रंग की चादर के स्वरुप को व्यापक रूप से समझना है, ना की औरों के अनुभव को आधार बनाकर सिर्फ़ किसी एक रंग की चादर को ओढ़ लेना बस है।"
उन्होंने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा कि "तुम्हें यह भी समझने कि ज़रूरत है कि जिन प्रतिष्ठित लोगों को आधार बना कर तुमने अपनी परिभाषा को गढ़ा और तदनुसार अपने लिए चुनाव किया है, वो लोग जिस स्तर पर है, उन सभी की सामाजिक पहचान उनके द्वारा अलग-अलग रंगों की चादर ओढ़े हुए, समाज के बीच स्वीकार ली गई है और अब वही उनकी पहचान भी है। अब वो चाह कर भी अपनी-अपनी चादर को नहीं उतार सकते। इस बात का सख़्त ध्यान रखना।"
"आपकी पोशाक और आपका मुखौटा आपके स्थायित्व का कारण भी बन सकता है जिसका संबंध एक स्तर पर आपके हित और अहित से होता है," ये उसने उन दिनों जाना था। फिर आप चाहते हुए भी उसे उतार नहीं पाते।
राजनैतिक और बौद्धिक वर्गीकरण का आधार जब 'सिर्फ़ एक ही विचार' बन जाए और एक बार उन वर्गों को जब सामाजिक स्वीकार्यता मिलने लगे तो इसकी जड़ें बढ़ते हुए समय के साथ सिर्फ़ और सिर्फ़ गहरी होती चली जाती है, फिर उनमें बदलाव इतना सरल नहीं।
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31-07-23
Rahul Khandelwal
#Akshar_byRahul
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