कभी-कभी विमर्श की दुनिया से कहीं दूर देखने पर मानो ऐसा प्रतीत होता है कि ये सब कृत्रिम नहीं है तो क्या है? क्या सही-गलत, नैतिक-अनैतिक, धर्म-अधर्म का चुनाव प्राकृतिक जगत में भी होता होगा या इस तरह के आलोचना और प्रत्यालोचना से बुने हुए जाल में उलझने के लिए मनुष्यों की हाज़िरी अनिवार्य है?
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14-08-23
Rahul Khandelwal
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