कुछ कहानी के पात्र भूलाए नहीं भूलते। जितने दिन आप कोई भी किताब पढ़ते है, उस से जुड़े पात्रों से आप बातें करने लगते है और शायद किताब ख़त्म होने के बाद भी। किताब पढ़ते वक़्त आप कई तरह-तरह के सवालों से जूझने लगते है जिनके जवाब लेखक कभी-कभी आख़िरी पन्ने तक भी नहीं देता। और किसी भी लेखक के लिए इस से ज़्यादा संतुष्ट करने वाली बात भी क्या होगी कि पाठक किताब पढ़ कर सवालों से जूझ रहा है। मतलब कि आप वाक़ई में किताब पढ़ रहे है, और लेखक का लिखना व्यर्थ नहीं गया।
‘तमस’ से मालूम पड़ता है कि कई बार किस तरह सत्ताधारी लोग अपने मत के लिए लोगों के बीच साम्प्रदायिक तनाव की स्थिति को पैदा कर उसका सहारा लेकर उन्हें बाँटने की कोशिश करते है। और ये आदत सत्ता में बैठे लोगों की सिर्फ आज की ही नहीं है। स्वतंत्रता पूर्व पंजाब में एकसाथ रहने वाले हिंदू-मुस्लिम एक दूसरे के हिस्सेदार बनते थे परंतु ब्रिटिश नीति के कारण माहौल में साम्प्रदायिक तनाव फैल जाता है। तमस स्वाधीनता प्राप्ति के पूर्व मार्च-अप्रैल १९४७ में हुए भीषण साम्प्रदायिक दंगो की पाँच दिन की कहानी है।
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26-06-2021
Rahul Khandelwal
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