इंसान को अपने भीतर “ख़ुद और मैं” के अस्तित्व को ज़रूर बचाएं रखना चाहिए। इतिहास गवाही देता है इस बात की कि जब-जब महान लोगों के समक्ष “मैं” के अस्तित्व पर तमाम प्रकार के आक्रमण का प्रयास किया गया है या समझौता करने का प्रस्ताव रखा गया है, तो वो उनके साथ चाहकर भी समझौता नहीं कर पाए है।
और शायद यही वो बात भी है जो “सुख और चैन” की परिभाषा को अलग भी करती है। बाहरी जीवन में चल रहे युद्ध के साथ-साथ एक युद्ध निरंतर मनुष्य के मन के भीतर भी चलता है। बस चिंतन-मनन के चलते सही निर्णय लेने की ज़िम्मेदारी हम में ज़िंदा रहें, यही दुआ है। अपना ख़्याल रखें दोस्त। तुम्हें ईश्वर के अस्तित्व का विश्वास जिस किसी भी परिभाषा में हो, वो तुम्हें तुम्हारे मन के भीतर चल रही जद्दोजहद से लड़ने की हिम्मत और ताकत दें।
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15-03-2024
Rahul Khandelwal
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