खामोश और बेज़ुबाँ आँखें
बोलती है ज़्यादा उनकी
अनुभव और परिपक्वता के संकेत है जो।
बातचीत के दौरान
कहा एक दिन उन्होंने—
“साथ बिताया गया इतिहास और साझी परंपरा
रिश्तों का होता है आधार
तय होती है जिससे उम्र उसकी।”
सुनकर उनके कुछ ये शब्द
याद हो आई मुझे मांसी की
मांसी की?
अअअ….कम उनकी, ज़्यादा उनकी बातों की
वैसे, अक्सर मुझे याद रह जाते है
शब्द अधिक, लोगों से
कहा था उन्होंने—
“टूटते हुए परिवार को बचाने की कई कोशिशें की
लेकिन नहीं पाई बचा उसे, जिसका ग़म है मुझे सदा।”
मैंने समझा और किया ख़ुद भी अनुभव
खामियाजा ये नहीं कि विराम रिश्तों पर लगा
बल्कि है ये—
कि निर्मित हो चुके इतिहास से
किसी को कर दिया गया है अलग
हमेशा, हमेशा के लिए
जिसने साझा किया था दूसरे से
स्व को, अपनत्व को।
भरोसा रख उस पर
बांटी थी भावनाएं
और किए थे साझा
अंतर्मन के कुछ हिस्से साथ उसके
जिन्हें नहीं छुआ था कभी
किसी और ने उसके सिवा।
बस खेद है इसी का
हां! सिर्फ इसी का
रिश्तों पर लगाम का नहीं, हरगिज़ नहीं
और तो और ये सब
पीछे छोड़ गया साथ उसके
अंतहीन और अविनाशी डर को भी।
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07-11-2024
Rahul Khandelwal
Note: The picture used in this piece is taken from the internet.
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