जीवन की गुज़रती हुई इस राह पर, हर बार थोड़ी दूर चलने के बाद एक आईना मेरे सामने आ ही जाता है और हर बार जब उसके सामने आकर खड़ा होता हूं तो दूर कहीं पीछे की तरफ़ अतीत से जुड़ा हुआ एक बिंब उसमें नज़र आता है। यह सोचकर कि रास्ते में पड़ने वाले अगले आईने में यह बिंब मौजूद नहीं होगा, मैं अपने क़दमों की रफ़्तार को अधिक तेज़ बढ़ा लेता हूं। लेकिन बीतता कुछ भी नहीं, सब कुछ स्थिर-सा मालूम दिखाई देता है- अतीत भी और उससे जुड़ा बिंब भी।
"व्यक्ति के जीवन से जुड़े ख़राब अनुभव, उसके ज़हन में कहीं बहुत भीतर, घटना से संबंधित पात्रों के लिए एक किस्म का दृष्टिकोण गढ़ देते है। वक्त और दुःख, समय के साथ गुज़र जाया करते है, किंतु ये दृष्टिकोण उस पीड़ित व्यक्ति के साथ हमेशा रहता है, उसकी अंतिम सांस और मृत्यु तक।"
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24-10-23
Rahul Khandelwal
#Akshar_byRahul

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