नई धूप की किरणों में कुछ अटूट साए घिर आए है।
गुज़रा हुआ कल कभी-कभी पीछे खींचने लगता है, गर जो वापस जाऊँ तो वही समय मुझे उस काल की अवस्था में आगमन की इजाज़त नहीं देता, दहलीज़ से ही लौट जाने को मुझे विवश करने लगता है और मौजूदा समय की ओर धकेलने लगता है। मैं उस काल की चौखट तक को भी लांघ नहीं पाता।
जब धूप की किरणें होती है तो छाया ढूँढता हूँ और जिस दिन धूप नहीं होती तो उसी परछाईं को ढूँढने के लिए सूरज को तलाशने लग जाता हूँ।
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30-12-21
Rahul Khandelwal
बहुत ख़ूब
ReplyDeleteशुक्रिया निशांत भाई।
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