लिखो, जो करते हो महसूस
लिखो स्वानुभवों को भी
लिखो अपनी सभी अनुभूतियां
क्योंकि मनुष्य के लिए प्रकृति के खिलाफ होना
छलना है ख़ुद को
अछूता नहीं हैं लेखक भी इससे
जिसका तुमने अवलोकन किया
जो रह गया सिर्फ़ स्वप्नों में ही कैद
उसे भी लिखो बिन किसी शर्त के
जैसे माँ करती है अपने शिशु से प्यार
पहचानों समकालीन विचारों को
मत मूंदो आँखें मानवीय स्थितियों से
दायित्व है तुम्हारे ये सभी
इन्हें दर्ज करो, लिखो
अतीत, वर्तमान, भविष्य को लिखो
लिखो जो समय से परे भी हो—तुम्हारी कल्पनाएं और ब्रह्माण्ड
सत्य का अंश जिसका, तुम्हारा अपना भी है
धर्म हैं तुम्हारे ये, तुम इनसे मुख नहीं मोड़ सकते
आत्म लिखो, लिखो
ब्रह्मन् भी
'लेखकीय धर्म' है ये
सभी
यही 'सत्य'
है लेखक होने का
No comments:
Post a Comment