इन गुज़रते फ़िक्र भरे पलों में कुछ अनदेखे बेफ़िक्र क्षण भी थे-निश्छल, ख़ूबसूरत। और जब समय दिया इन्हें तो कुछ यूँ बहने-सी लगी आँखें जैसे अब वो फ़िक्र से बुना हुआ जाल अलविदा कहने को आया है और तब मालूम पड़ा कि मुझसे वो फ़िक्र मैंने खुद ही बाँधी हुई थी।
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30-10-2021Rahul Khandelwal
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