उसने जवाब दिया- मैं कई दफा तुम्हें तुम्हारे होने की वजह और तुम्हारे जीवन का लक्ष्य बता चुका हूं लेकिन तुम हर दफा मौजूदा समाजिक कारकों में बंधकर उस राह की तरफ नहीं बढ़ते हो और पूछते मुझसे हो कि मैं "कश" में तब्दील क्यों नहीं होता। तुम डरते हो चलने से, डरो मत और इस डर से बुनी हुई काल्पनिक चादर को जिसे तुमने तमाम प्रकार के मिथक और समाज के नाम पर ओढ़ा हुआ है, इसे उतार फेंको। पिछले कई वर्षों से मैं यही करने का प्रयत्न कर रहा हूं, पर तुम हर बार ख़ुद को झूठी दिलासा देने के लिए अलग-अलग रंग की चादर से ढ़क लेते हो और अंधेरे को बरक़रार रखते हो। यकीन करो मेरा, मैं तुम्हारी पहचान तुम्हीं से कराना चाहता हूं, किसी "काश" से नहीं क्योंकि उस राह पर तुम्हें रोकने वाला कोई भी पछतावा न होगा।
___________________
27-04-2023
Rahul Khandelwal
No comments:
Post a Comment