परत-दर-परत उतार रहा हूं चादरें
ताकि गहराईयों में तलाश सकूं
प्रक्रियाओं के पीछे छिपी वास्तविकताओं को
कि देख सकूं वो सूक्ष्म परिभाषाएं
और जान सकूं
और भी बेहतर तरीके से
फ़र्क को
सही और गलत के बीच
कि थोड़ा और अधिक इंसान बन सकूं
परत-दर-परत, उतार रहा हूं चादरें
कि सुलझा सकूं
इन मानव निर्मित गुत्थियों को
जिसका अस्तित्व प्राकृतिक नहीं
बल्कि इतिहास के किसी दौर में
छोड़ आया था मनुष्य इन्हें कहीं
जो तबसे चली आ रही है अबतक
कई सभ्यताओं से गुज़रकर
परत-दर-परत, उतार रहा हूं चादरें
कि परख सकूं
सच और झूठ के ज्ञान को
और कर सकूं दोनों के बीच अंतर
जिसने ओढ़ लिए है अब
कई-से कृत्रिम आवरण
हे संचालक! दृष्टि दें और ले चल,
कृत्रिमताओं से सत्यता की ओर।।
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10-04-2024
Rahul Khandelwal
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