मुझे तुम्हारा वो चेहरा नहीं देखना
जो पेशेवर जगहों पर तुम इख्तियार करते हो
या जिसे आधिकारिक ठिकानों पर दिखाते हो।
वो भी नहीं
जो कक्षा में या कॉलेज में साथ चलते हुए दिखता है।
मुझे देखना है वो चेहरा
जो चार लोगों संग घूमते हुए शहरों की सड़कों पर
रहता है तुम्हारे साथ
खाने के पकवान और रुकने की जगह तलाशते हुए
विकल्पों के बीच चुनाव करते हुए।
सार्वजनिक निर्णय लेते समय जिसे करते हो इख्तियार
कमरे के भीतर अपना लेते हो जिसे साथ होने पर
वो चेहरा देखना है मुझे।
तुम्हारा वो चेहरा नहीं देखना चाहता मैं
जो कक्षा में बाकी विद्यार्थियों के बीच
पढ़ाते वक्त तुम अपना लेते हो।
जिस चेहरे के साथ उसी कक्षा में एक दिन
अकेले में तुमने मुझसे बात की थी
उन तमाम मानवीय भावनाओं के साथ
आम दिनचर्या में जिनके लिए कोई स्थान नहीं
वही चेहरा देखना है मुझे।
देहरादून के अस्पताल में जब माँ भर्ती थी
वहाँ उपस्थित कमरे में तुम सुबह-शाम आते थे
एक कर्मचारी के रूप में
अनिच्छा से असत्य चेहरे के साथ
मुझे सच में उसे नहीं देखना।
ड्यूटी खत्म कर शाम को
अस्पताल के दरवाज़े पर तुम्हारे इंतज़ार में खड़े
जिस चेहरे के साथ तुम
अपने जीवनसाथी से लिपटकर रोए थे
मुझे वही चेहरा देखना है।
संकट के समय पुराने दिनों में किशोर थे तुम जब
कि थोड़ा दर्द कम हो, साथ मांगा था तुमने
ओढ़ा हुआ था तब जो तुमने
मुझे वो चेहरा हरगिज़ नहीं देखना
विपरीत परिस्थिति में वयस्क हो जाने पर
जब तुम नौकरी में आ गए
पुकार को मेरी जिस चेहरे के साथ अनसुना किया था तुमने
वही चेहरा देखना है मुझे
मुझे तुम्हारा चेहरा दिन के उजाले में
चकाचौंध और रौशनियों के बीच नहीं देखना।
रात के अंधेरे में दिखता है जो
मनुष्य को उसके होने के अहसास के बीच
मुझे तुम्हारा वही चेहरा देखना है।
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14-07-2025
Rahul Khandelwal
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