फिसल रहा है रेत निरंतर
ना वापस उठने के लिए कभी
लेकिन कण उड़कर उसके आ जाते है तुम्हारे दर तक
जैसे उग आती है स्मृतियों की अवांछित जड़े बिन बुलाएं
बहुमूल्य है ये इतिहास के कण
कोई कीमत नहीं है इनकी
संजो के रख लेना इन्हें भी सदा के लिए
जैसे रखते हो 'विश्वास और उम्मीद' को तुम ज़िंदा रोज़
ख़त्म होती उसकी सांसों से बचाकर।
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30.11.2024
Rahul Khandelwal
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