उनका व्यवहार
जब वो ज़बरदस्ती कर उसे
अपना सा बनाने की कोशिश में
जद्दोजहद है करते
मैंने उसे कई दफ़ा
संघर्ष करते हुए देखा है
कि उसका रंग
यूं ही, बरक़रार
बचा रहे बिना घुले
कि यहां सब उसे
अपने रंग से रंग देना चाहते है
सबकी गुहार
विभिन्नताओं को बचाने की है
वास्तव में
चाहता कोई भी नहीं
अस्तित्व उसका
ख़त्म कर उसे
समरूप कर देना चाहते है
सभी एक-दूसरे को
उसने, सबको उनके
असल रूप में स्वीकारा है
पहले से ही
इतिहास और साहित्य पढ़ने के बाद
और भी अधिक
लेकिन, निरालापन
नष्ट कर देना चाहता है
ये समाज उसका
सवाल जटिल ना होकर
बहुत-ही सरल है-
विभिन्नताओं की दुहाई देने वाले,
अनूठेपन को स्वीकारने में कतराते क्यूं है?
(ज़ुबानी कुछ भी कह देना बहुत सरल है उसके व्यवहारीकरण से।)
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24-08-23
Rahul Khandelwal
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