प्रेमचंद ने कहा है कि "विचार" रिश्तों की उम्र का आधार होते है। मुझे लगता है दो इंसानों के जीवन के "अतीत से जुड़े एक-से अनुभव" भी उन्हें जोड़ने का काम करते है और शायद कुछ आदतें भी। 'लेखन' एक आदत के रूप में ऐसा ही ज़रिया बना तुमसे जुड़ने का। लिखने की आदत आपको गहरी कल्पना के क्षेत्र में उतरने का मौका देती है, जहां आप में एक प्रकार का ठहराव समय के साथ जन्म लेने लगता है, जिसके चलते आप में दूसरों को सुनने और उनकी स्थिति के अनुसार उन्हें समझने की क्षमता अधिक होती है और गुज़रते हुए समय के साथ ये क्षमता बढ़ती ही चली जाती है। शायद एक आदत यह भी समान थी, जिसने इस अनायास मुलाकात को एक रिश्ते में तब्दील किया।
सही है कि कुछ मुलाकातें बहुत ही अनायास होती है, हम उसके लिए कोई औपचारिक समय-सारणी निर्धारित नहीं करते। यह भी स्वाभाविक ही है कि जब इस तरह की मुलाकातें एक सीढ़ी पार कर और दो कदम आगे चल किसी रिश्ते का रूप धारण करने लगे, तो आप भी अपने इर्द-गिर्द मौजूदा भीड़ में से सिर्फ़ एक-दूसरे पर ही हक़ अदायगी के नियम लागू करने लगते है और उनसे बंधते और ख़ुद को बांधते चले जाते है। इस तरह की प्रक्रियाएं इतनी स्वाभाविक होती है और अपना काम इतनी ख़ामोशी से करती है कि कब अनजाने में ही आप एक-दूसरे के साथ 'एक प्रकार की स्पेस और विकल्प चुनने की आज़ादी' का आदान प्रदान कर चुके होते है कि आपको मालूम ही नहीं पड़ता।
जीवन से जुड़े अहम सवालों पर हर कोई सोचता नहीं है, खासतौर से ऐसे सवाल जिनके जवाब और उससे जुड़ी व्यवहारिकता के समय आप ख़ुद को कभी आगे नहीं रखते; बल्कि सामने वाले की स्थिति को प्राथमिकता देना आपके स्वाभाविक व्यवहार का हिस्सा होता है जिसे लोग आपके अभिनय का हिस्सा समझ बैठते है।
शुक्रिया दोस्त मेरी कहानी सुनने और अपनी सुनाने के लिए।
____________________
11-05-2024
Rahul Khandelwal
No comments:
Post a Comment