Friday, December 29, 2023

उन्होंने कहा कि "सब्र की अहमियत" से कीमती मुझे कुछ नहीं लगता।


पिछली रात ऐसे गुज़रती चली गई मानो दिन गुज़रा हो। समय का अभाव था, पांच बजे सोकर छः बजे उठना था, मैं इंटरव्यू के लिए लेट नहीं होना चाहता था।

अच्छे दोस्त जीवन में कम होते है, तुम्हारा साथ रहा दोस्त, एक कागज़ पर दर्ज कर तुम्हारी दी हुई सहायता को मैंने दाहिनी पॉकेट में रख लिया हैं। मैं इसे भूलना नहीं चाहता था, इसलिए। "दर्ज किए हुए शब्द याद में तब्दील होकर समय–समय पर दस्तक देकर आपके जीवन में अहमियत रखने वाले लोग और वस्तुओं की याद दिलाते है, यादों और इतिहास के बिना इंसान की पहचान अधूरी है, मानो वो किसी नए शहर में एक अजनबी की तरह हो। खैर।"

जी.टी.बी. से साकेत का सफर कब गुज़रा, पता ही नहीं चला। मैं लगातार रीडिंग में व्यस्त था। तैयारी के बाद जब बाहर निकला तो दिल्ली हर रोज़ की तरह उतावली नज़र आई, सुबह और शाम के समय शहरों की गति तेज़ हो जाती है, हर कोई समय को पकड़ने की जद्दोजहद में दिखता हुआ नज़र आता है। "कभी–कभी हम सत्य को जानते हुए भी, उसे नकार देना चाहते है। हम जानते है कि हम नाकामयाब होंगे, परन्तु बहुत–सी मानवीय आदतें आपके भीतर घर कर चुकी होती है। इंसानी स्वभाव है, सत्य को स्वीकार कर चलना हर किसी के बस में नहीं।" मैं सोच ही रहा था कि सामने से आता हुआ ऑटो दिखाई पड़ा, मैंने रुकने के लिए हाथ आगे किया (बढ़ाया)।

–जे.एन.यूं. जाना है, कितना लेंगे भैया?

–सौ रुपए लगेगा, बैठ जाइए।

पिछले वाले ऑटो से हिसाब की तुलना कर, मैं बैठ गया। हम कुतुब मीनार रोड से होते हुए गुज़र रहे थे, और मैं इतिहास से। तभी अचानक बिना इजाज़त लिए इतिहास और मेरे बीच होने वाली वार्ता का उल्लंघन करते हुए ("आपके और आपके विचारों के बीच बाहरी उल्लंघन होना आपके बस में नहीं, एक कहानी टूटी कि दूसरी शुरू हो गई, ये भी हमारे बस में नहीं, कहानियों से सीखना हमारे बस में है") उन्होंने कहा कि मैं पिछले बीस सालों से इस रूट पर ऑटो चला रहा हूं लेकिन अब समय बदल गया है, पहले जैसा नहीं रहा। शायद जब बीस साल पहले किसी और का इंटरव्यू रहा होगा, तब भी इन्होंने उसे ऐसा ही कहा होगा कि "अब समय बदल गया है"।

"इतिहास गवाही देता है इस बात की कि हर दौर में पिछली पीढ़ी वाले नई पीढ़ी (मौजूदा पीढ़ी) वाले को देख दुःखी हो उठते है कि अब इंसान पहले जैसे नहीं रहे।" खैर। इस सफ़र का भी पता नहीं चला कि कब गुज़रा। अंतिम में मैं एक सवाल कर बैठा कि–

–बीती हुई उम्र में सीखे हुए अलग–अलग पाठ में सबसे अहम और ज़रूरी पाठ आपको क्या लगता है?

–उन्होंने कहा कि "सब्र की अहमियत" से कीमती मुझे कुछ नहीं लगता, हम सभी को इसके महत्व को समझना और सीखना चाहिए।

दो सेकंड आंख बंद और पांच सेकंड के मौन की वजह से पैदा हुई चुप्पी को तोड़ते हुए उन्होंने कहा कि ये लो हम पहुंच गए। साकेत से जे.एन.यू. का सफ़र कब गुज़रा, पता ही नहीं चला। मैं लगातार सुनने में व्यस्त था।

___________________

01-04-23

Rahul Khandelwal

#Akshar_byRahul

No comments:

Post a Comment

Impalpable

I wish I could write the history of the inner lives of humans’ conditions— hidden motivations and deep-seated intentions. Life appears outsi...