क्या आपने कभी उन कारकों पर ध्यान दिया है जिनकी वजह से आपकी चेतना का निर्माण होता है और तत्पश्चात् आप विभिन्न विषयों पर अपनी राय व्यक्त करते है और अलग-अलग विकल्पों के बीच से किसी एक का चुनाव करते है?
"बाहरी और भीतरी 'मैं' के बीच के वाद-विवाद की उलझनों में फंसा मनुष्य क्या इस अनंत काल तक चलने वाली प्रक्रिया से बाहर आ सकता है कभी? एक व्यवहारिकरण पर ज़ोर देता है, तो दूसरा इस कृत्रिम व्यवहार के बीच व्याप्त 'सत्य' और 'असलियत' की ओर चलने को बाध्य करता है। क्या इन दोनों के बीच की बहस में से, हम असल की पहचान का चुनाव कर पाएंगे कभी? या हम अभिनय करने के इतने आदी हो गए है कि असल को जानते हुए भी नकार देना चाहते है उस 'सत्य' को, जिसकी समाप्ति के लिए हम हर दिन कृत्रिमताओं पर आधारित अनावश्यक संघर्ष करते चले जा रहे है?"
यह एक ऐसी रणभूमि है, जो सदैव अदृश्य रहती है।
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09-02-2024
Rahul Khandelwal
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