Tuesday, November 14, 2023

हम धीरे-धीरे 'मजबूर होते हुए मनुष्यों की श्रृंखला' का हिस्सा बनते जा रहे है।

 


"जिन छोटे गांव और कस्बों को, वहां रहने वाले लोगों को हम छोटी निगाह से देखकर आंकते है और तरह-तरह की संज्ञाएं देते है, उन दूर-दराज स्थित गांव में जब कभी-भी जाता हूं तो लगता है पर्यावरण की सुरक्षा और उसके ख्याल को लेकर वहां रहने वाला समाज और लोग हमसे कई ज़्यादा अधिक सहज है और उससे जुड़ी गंभीर समस्याओं को हमसे बेहतर समझते है। मैंने कई बार देखा है और महसूस किया है कि गंभीर मुद्दों को लेकर ग्रामीण समाज अपने मन में कहीं दूर, भीतर, अपने अवचेतन मन में एक प्रकार के डर को जल्द ही स्थान दे देता है, जिसका जाने-अनजाने में सकारात्मक परिणाम ही होता है। इस तरह का व्यवहार हमें शहरों में रहने वाले लोगों में कम देखने को मिलता है। जिस प्रकार हम उन तमाम तरह के भेदभाव को सामने घटते हुए देखने के आदी इस हद तक हो गए है कि बस एक चुप्पी साधकर और शांत रहकर उसे स्वीकार लेते है, उसी प्रकार हम पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं को देखकर भी अपने मौन को दर्ज करने के सिवा और कुछ नहीं कर सकते। हम धीरे-धीरे 'मजबूर होते हुए मनुष्यों की श्रृंखला' का हिस्सा बनते जा रहे है। यह बेहद दुखद है।"

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14-11-2023

Rahul Khandelwal 

#Akshar_byRahul

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