कृत्रिमताओं की ऊन से बुनी चादरों ने,
प्राकृतिक सत्य को पूरे तरीके से ढक दिया है।
हम असल को देखना नहीं चाहते कयोंकि,
सत्य पर ही ढकी रहें चादरें, हित इंसान का अब इसी में है।
हित-अहित के तराज़ू ने अब स्थान ले लिया है,
सच और झूठ के तराज़ू का,
अब तोलता है इंसान इसी में अपने कर्मों के हिसाब को।
सत्य-असत्य के ज्ञान की अब किसी को परवाह नहीं,
निर्णय का आधार, अब बचा है मनुष्य का निजी स्वार्थ,
हित और अहित के स्वरूप में।
कृत्रिमताओं को बनाएं रखने में मनुष्य का हित छिपा है,
बिखर जाएगा उसका नकली महल सत्य की तलाश से।।
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28-05-2024
Rahul Khandelwal
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