Sunday, August 27, 2023

इस डर से बुनी हुई काल्पनिक चादर को जिसे तुमने तमाम प्रकार के मिथक और समाज के नाम पर ओढ़ा हुआ है, इसे उतार फेंको।

 


जैसे अचानक ही एक हवा का झौंका ज़ोरो से चला, आखिरकार एक लंबी छलांग लगाने के बाद मैंने हवा में उड़ते हुए अपने जीवन में अब तक के जमा हुए "काश" को पकड़ ही लिया और उस से सवाल किया कि तुम "कश" में तब्दील क्यों नहीं होते।

उसने जवाब दिया- मैं कई दफा तुम्हें तुम्हारे होने की वजह और तुम्हारे जीवन का लक्ष्य बता चुका हूं लेकिन तुम हर दफा मौजूदा समाजिक कारकों में बंधकर उस राह की तरफ नहीं बढ़ते हो और पूछते मुझसे हो कि मैं "कश" में तब्दील क्यों नहीं होता। तुम डरते हो चलने से, डरो मत और इस डर से बुनी हुई काल्पनिक चादर को जिसे तुमने तमाम प्रकार के मिथक और समाज के नाम पर ओढ़ा हुआ है, इसे उतार फेंको। पिछले कई वर्षों से मैं यही करने का प्रयत्न कर रहा हूं, पर तुम हर बार ख़ुद को झूठी दिलासा देने के लिए अलग-अलग रंग की चादर से ढ़क लेते हो और अंधेरे को बरक़रार रखते हो। यकीन करो मेरा, मैं तुम्हारी पहचान तुम्हीं से कराना चाहता हूं, किसी "काश" से नहीं क्योंकि उस राह पर तुम्हें रोकने वाला कोई भी पछतावा न होगा।

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27-04-2023

Rahul Khandelwal

आपके चुनाव और निर्णय लेने के पीछे जब "कारण और तर्क" का स्थान "खांचों में बांट दी गई विचारधाराएं" लेने लगे, तो आगामी भविष्य सिर्फ़ अंधकार से घिरा हुआ दिखाई देता है।

 

 

वो बाकी चीजों की भांति नहीं हैं कि दूरी अधिक हो तो धुंधला दिखाई दे, उसकी स्पष्टता की तीव्रता किसी भी प्रकार के फासले या दूरी के मोहताज नहीं है। इसकी पहचान होते ही तमाम कारकों (राजनीतिक, धार्मिक, समाजिक और आर्थिक) का निर्णय तुरंत ले लिया जाता है। इसका नाम "विचार" है। इससे कोई अछूता नहीं, यहां तक कि एकेडमिक डिस्कोर्स भी नहीं जिसका आधार (पता नहीं ये आधार है भी या नहीं या कितना प्रतिशत है) 'कारण, चेतना और तार्किकता' से है। आपके चुनाव और निर्णय लेने के पीछे जब "कारण और तर्क" का स्थान "खांचों में बांट दी गई विचारधाराएं" लेने लगे (ख़ासतौर से ऐसी विचारधाराएं जिनका लक्ष्य ही 'तार्किकता' को नष्ट कर देना हो), तो आगामी भविष्य सिर्फ़ अंधकार से घिरा हुआ दिखाई देता है। 

क्या किसी भी गंभीर और आलोचनातमक डिस्कोर्स में आप इसलिए हिस्सा लेना बंद कर देंगे क्यूंकि उसकी व्यवस्था करने वाले आपकी विचारधारा के विपरीत या अलग है? मैं किसी भी एकेडमिक बहस में हिस्सा लेने का चुनाव इस आधार पर नहीं करता कि उसके आयोजक कौन है। लेकिन नहीं, यहां आपको कदम–कदम पर रोका जाता है बिना किसी भी प्रकार का तर्क पेश किए क्योंकी सामने वाला "कारण और तर्कसंगतता" से घोर घृणा करता है, उन्हें "सवाल पूछने की क्षमता" की गंध अच्छी नहीं लगती।

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30-04-2023

Rahul Khandelwal 

Saturday, August 26, 2023

अनूठेपन से डरता समाज

 


मुझे छोटा नज़र आता है

उनका व्यवहार

जब वो ज़बरदस्ती कर उसे 

अपना सा बनाने की कोशिश में

जद्दोजहद है करते


मैंने उसे कई दफ़ा

संघर्ष करते हुए देखा है 

कि उसका रंग

यूं ही, बरक़रार

बचा रहे बिना घुले

कि यहां सब उसे

अपने रंग से रंग देना चाहते है


सबकी गुहार 

विभिन्नताओं को बचाने की है

वास्तव में

चाहता कोई भी नहीं

अस्तित्व उसका

ख़त्म कर उसे

समरूप कर देना चाहते है 

सभी एक-दूसरे को


उसने, सबको उनके

असल रूप में स्वीकारा है

पहले से ही

इतिहास और साहित्य पढ़ने के बाद

और भी अधिक

लेकिन, निरालापन

नष्ट कर देना चाहता है

ये समाज उसका


सवाल जटिल ना होकर

बहुत-ही सरल है-

विभिन्नताओं की दुहाई देने वाले,

अनूठेपन को स्वीकारने में कतराते क्यूं है?


(ज़ुबानी कुछ भी कह देना बहुत सरल है उसके व्यवहारीकरण से।)


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24-08-23

Rahul Khandelwal

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You have taught me the real meaning of "Upanishads" knowingly or unknowingly, I don't know. But yes, you have taught me..


The theories and arguments which the historians are propounding and making in their research nowadays remind me of the fact that the same had been told to me by my teacher from whom I have learned how to read and understand history as a discipline whether it is about tracing human behaviour, mentalities and emotions in history or about how mercantile groups enforced themselves as a caste group to get an identity in the past (in Indian context). I remember all the lessons which you have taught me sir.


It became difficult for me to understand Marc Bloch and his writings (specifically his Historian's Craft) at a very first instance as the same text deals with 'Philosophy of History'. But I tried and managed to complete hundred and fifty pages in a very short period of time as I had to present the same in brief in about fifteen minutes.

Sir, sometimes I fail managing the things by myself, but I try and I promise I shall keep trying. Thank you for all the taught lessons and for providing me that space which officially might be unacademic for others but it will always remain the academic one for me. You have taught me the real meaning of "Upanishads" knowingly or unknowingly, I don't know. But yes, you have taught me and I have realised the same now (as I am able to correlate the conclusions taught by you with the lectures or talks I listen to). Thank you Sir!

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20-08-23

Rahul Khandelwal

#Akshar_byRahul

Always be careful....


Always be careful when you are a part of such a group that has odds in it. Sometimes your gestures can be misinterpreted by the odd ones. There is a possibility that, in such cases, no one is wrong because in the end it is about interpretations and perceptions that we make (or create) for others and that matters the most for the individual until the same is clarified through communication.

If we continue to believe in those interpretations and perceptions perceived by us only, then sometimes it results in misunderstanding and the same has the capacity to break the trust among all the individuals who are part of the same group.

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19-08-23

Rahul Khandelwal

Saturday, August 12, 2023

काश।


काश हम समझ पाते कि मनुष्यों द्वारा निर्मित धार्मिक उन्माद जिसके अस्तित्व और स्वरूप का आधार कृत्रिम है, उसके तले दुबका-कुचला इंसान आज मानवता, प्रेम और सद्भाव की छांव तले पनाह की गुहार लगा रहा है। काश।

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01-08-2023

Rahul Khandelwal 

 

ऐतिहासिक और वर्तमान में हो रही घटनाओं, परिस्थितियों, मनुष्यों द्वारा लिए गए फैसलों के पीछे संबंधित मानवीय व्यवहार और भावनाओं का कितना योगदान हो सकता है?

इंसान के आंसू भी सच और झूठ की पहचान का पैमाना हो सकते है, ये उसने उन दिनों जाना था। करीब से निहारने पर मालूम पड़ता है कि आम दिनों में घिरी आम सी दिनचर्या में बीत रही आम घटनाओं की महत्ता इतनी भी अधिक हो सकती है कि आप किसी के चहरे पर आए (पड़े) आंसुओं से ये अंदाज़ा लगा पाने में समर्थ हो पाते है कि उस व्यक्ति के द्वारा सुनाई गई कहानी सच और झूठ के तराज़ू में किस ओर अधिक झुकी हुई है अथवा कथा की निर्मिति वास्तविक है या कृत्रिम।

मैं शाम के वक्त लौट रहा था तभी मैंने उन्हें मैट्रो स्टेशन की सीढ़ियों पर खड़े हुए देखा। इंसान के द्वारा इस्तेमाल किए गए चिन्हों और प्रतीकों में उसके हावभाव (सुख-दुःख) बताने की क्षमता होती है। आधी कहानी उनकी जुबान ने बयां की तो शेष आसूं पोंछते उनके दुपट्टे ने। मुझसे पहले ही किसी और के द्वारा उनकी कहानी को सत्यापित किया जा चुका था और कुछ थोड़ी आर्थिक मदद भी। सत्य पर आधारित इंसानी भावनाओं को सही तरीके से पहचानने की हम सभी में एक समान-सी दृष्टि पाई जाती है, जो शायद ही कभी धोखा खाती है।

वहां से लौटा तो मुझे कमलेश्वर याद आ गए, उन्होंने ठीक ही कहा था कि "मनुष्य के आँसुओं से पवित्र कुछ भी इस दुनिया में नहीं है।" चौराहें से दाई और मुड़ने लगा तो टॉलस्टॉय ने घेर लिया जिन्होंने अपनी कहानी- 'मनुष्य का जीवन आधार क्या है' में देवता से ये कहलवाया था कि "पहले मैं समझता था कि जीवों का धर्म केवल जीना है, परन्तु अब निश्चय हुआ कि धर्म केवल जीना नहीं, किन्तु परेमभाव से जीना है। इसी कारण परमात्मा किसी को यह नहीं बतलाता कि तुम्हें क्या चाहिए, बल्कि हर एक को यही बतलाता है कि सबके लिए क्या चाहिए। वह चाहता है कि पराणि मात्र परेम से मिले रहें। मुझे विश्वास हो गया कि पराणों का आधार परेम है, परेमी पुरुष परमात्मा में, और परमात्मा परेमी पुरुष में सदैव निवास करता है। सारांश यह है कि परेम और पमेश्वर में कोई भेद नहीं।"

गांव और शहर में रहने वाले निवासियों के व्यवहार के बीच के फ़र्क को मैंने कई बार महसूस किया है। शिक्षा एक स्तर पर इंसान में आत्मविश्वास पैदा करती है और उसे आत्मनिर्भर बनाने की ओर अग्रसर भी, लेकिन क्या इसका संबंध इंसान के मूल व्यवहार और भावनाओं में होने वाले (और नहीं होने वाले) बदलाव से भी है? फ्रेंच इतिहासकार फर्नैंड ब्रॉडेल ने कहा था कि परिस्थितियों और घटनाओं की सच्चाई ऊपरी सतह पर नहीं बल्कि गहराई में निवास करती है। मैं सोचता हूं कि ऐतिहासिक और वर्तमान में हो रही घटनाओं, परिस्थितियों, मनुष्यों द्वारा लिए गए फैसलों के पीछे संबंधित मानवीय व्यवहार और भावनाओं का कितना योगदान हो सकता है, यह शोध का विषय है। क्या एक-सी स्तिथि में प्रतीत होती हुई एक-सी मानवीय भावनाएं समाज के विभिन्न वर्गों में आने वाले अलग-अलग लोगों को, उनके व्यवहार को, एक ही तरह से प्रभावित करती है?

मैं ये सब सोच ही रहा था कि कब बस स्टॉप आ गया, मालूम ही नहीं पड़ा।

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11-08-2023

Rahul Khandelwal

Impalpable

I wish I could write the history of the inner lives of humans’ conditions— hidden motivations and deep-seated intentions. Life appears outsi...