Friday, September 22, 2023

Choose Your Space Wisely.


"Normalizing prejudices against something to such an extent that you start accepting the same without questioning them leads you to the dark room where the ideas of rationality and reason cease to exist. Every existing socio-political conditions or atmosphere has a historical background. Some spaces make you able to maintain balance between your interests & truth and some bound you to see your interests only and blind you to not see the truth in any situation or case. It is the sole decision of yours to choose a particular space out of the available ones. Therefore, choose your space wisely."

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22-09-23

Rahul Khandelwal

Wednesday, September 20, 2023

धूल


जामिया गेट नंबर आठ से बाई तरफ़ मुड़ते है, तो सीधी सड़क सुखदेव विहार की ओर जाती है। प्रभात सर की क्लास जल्दी ही खत्म हो जाती है और संस्कृत की क्लास में अभी समय था तो सोचा सराय जुलैना में कोई कमरा ढूंढ आता हूं। सुबह करीब साढ़े दस का वक्त रहा होगा, मैं सुखदेव विहार की ओर जाने लगा और लाल बत्ती से दाहिनी ओर मुड़ गया, यह सड़क जुलैना की और जाती है। कहा जाता है कि इलाकों की तमाम खबरें वहां मौजूद दुकान वालों, ठेली वालों के पास अधिक होती है, तो मैंने जानकारी हासिल करना शुरू किया। यहां की गलियां बहुत संकरी बनी हुई है, उन्हीं में से एक गली को मैंने राह के तौर पर चुना जिसमे मौजूद एक फल वाला अपनी ठेली को संवार रहा था। बातचीत करने पर और मुझे नीचे से ऊपर निहारने के बाद उन्होंने मुझे शर्मा जी के मकान का पता दिया जो एक गली छोड़कर वहीं पर स्थित था। मैं बताए हुए पते पर पहुंचा और घर की डॉरबेल बजाई। घर में मौजूद मालकिन ने मुझे घर के पिछले भाग में स्थित एक कमरा दिखाया, फिर थोड़ी बातचीत का सिलसिला भी शुरू हुआ। मैं जामिया का स्टूडेंट हूं, ये मैं उन्हें बातों-बातों में बता चुका था।

“मैं एक कथावाचक हूं, भारत के तमाम शहरों में भगवदगीता का पाठ करती हूं। मेरा यूट्यूब चैनल भी है आप देख सकते है”, उन्होंने मुझसे कहा।

(सुनने में परिचय अगर भारी भरकम-सा लगे तो इंसान उसे बतलाने में देरी नहीं लगाता, वो बिना पूछे ही अपनी पहचान को आपसे साझा करता है। मनुष्य द्वारा बनाए गए जगत में इंसान से ज्यादा उसकी पहचान का महत्व होता है, हम इस ढांचे के इतने आदी हो गए है कि ठहरकर सोचते भी नहीं, ख़ैर।)

आगे वो कहने लगी, “हम पढ़ने वाले स्टूडेंट को ही यह कमरा देना चाहते है, जो शांत स्वभाव का हो। घर में मैं काफी सफ़ाई रखती हूं, आप देख भी रहे होंगे फर्श पर धूल नहीं है। यही दो-चार बातें है, जिनकी हम किरायदार से उम्मीद भी करते है कि वो इनका ध्यान रखें।"

मैं ये सब बातें सुनता रहा। यह बेहद ही स्वाभाविक है कि जब आप मकान खोजने निकलते है तो आपसे आपका नाम पूछा ही जाता है और इस सवाल में भी पूछने वाले की अधिक इच्छा आपका सरनेम जानने में होती है ताकि वो जल्द ही आपकी जाति और धर्म का निर्णय कर किसी भी प्रकार की दुविधा में ना रहे।

“मेरा नाम राहुल खंडेलवाल है”, मैंने कहा (उन्हें खंडेलवाल से मतलब था, यह मैं जानता था)।

“खंडेलवाल तो बनिए होते है और राजस्थान में अधिक होते है”, शर्मा जी आगे बात को बढ़ाने लगी (अस्मिताओं से जुड़े सवाल लोग आपसे डायरेक्ट नहीं करते, हालांकि वे जानना ज़रूर चाहते हैं, इसीलिए एक प्रकार की सुरक्षा का सहारा लेते हुए बात को घुमाकर पूछते है क्योंकि इस बात को वे भी जानते है कि बचाव करते हुए सवाल पूछने पर सामने से ख़ुद ही जवाब मिल जायेगा। उन्हें लगता है ऐसा करने से वे बच जाते है, लेकिन ये उनका भ्रम मात्र होता है)।

“आपने सही कहा लेकिन खंडेलवाल राजस्थान के अलावा अन्य जगहों पर भी रहते हैं जैसे पंजाब में, उत्तराखंड में और भी कई इलाकों में, वैसे मैं प्रजापति हूं”, उनकी बात का जवाब देते हुए मैंने कहा।

“अच्छा, चलो कोई बात नहीं। इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता, वैसे भी सभी हिंदू तो एक ही है”, मानो उन्होंने सांत्वना देते हुए मुझसे ये कहा हो। (कभी-कभी इंसान अपनी बात को इस तरह से कहता है कि उसे लगता है कि उसने कहकर भी कुछ नहीं कहा और सुनने वाले ने भी कुछ नहीं समझा। इस स्वभाव को कहने और सुनने वाले इतनी सहजता से स्वीकार करते है कि उन्हें मालूम ही नहीं पड़ता कि ऐसा करने से एक प्रकार के सामाजिक खांचे का निर्माण भी हो जाता है)।

बातचीत ख़त्म हो जाने के बाद मैं संस्कृत की क्लास के लिए सराय जुलैना से जामिया गेट नंबर आठ की ओर फिरसे लौटने लगा। क्लास शुरू होने में समय कम बचा था तो मैंने अपनी रफ़्तार को तेज़ किया कि तभी अचानक से अधिक तेज़ी से दौड़ता हुआ एक विचार मुझे घेरने लगा कि “हां, धूल शर्मा जी के घर के फर्श पर तो नहीं थी, लेकिन क्या उनके मन में भी नहीं थी? अअआ....शायद धूल उनके मन में थी।"

यही सब सोचते हुए और क्लास की ओर जाते हुए फिर मैंने अपनी रफ़्तार को और अधिक तेज़ कर लिया।

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20-09-23

Rahul Khandelwal

#Akshar_byRahul


Saturday, September 16, 2023

क्या प्राकृतिक जगत भी ऐसा है?


 

कभी-कभी विमर्श की दुनिया से कहीं दूर देखने पर मानो ऐसा प्रतीत होता है कि ये सब कृत्रिम नहीं है तो क्या है? क्या सही-गलत, नैतिक-अनैतिक, धर्म-अधर्म का चुनाव प्राकृतिक जगत में भी होता होगा या इस तरह के आलोचना और प्रत्यालोचना से बुने हुए जाल में उलझने के लिए मनुष्यों की हाज़िरी अनिवार्य है?

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14-08-23

Rahul Khandelwal

Thursday, September 14, 2023

Human Behaviour and the Imbibed Contradictions in it.


1) Not all people having knowledge are willing to help the needy ones because of the human tendency present in them also, of not sharing information with others. They are capable ones but very few of them help others. You may find contradictions imbibed in the behaviour of such people in a sense that they always speak about the concepts like equal rights, helping the needy and poor people, not bullying & hurting others etc., but when it comes to helping someone in real, they may take their steps back.

2) People who make fun of others know very well, of whom they can make fun. They deliberately choose weak people for making fun because they know about themselves that they are not capable enough to do such stuff with their equally capable counterparts.

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14-09-23

Rahul Khandelwal

Sunday, September 10, 2023

कभी-कभी इंसान इतना बेबस होता है कि

 

"कभी-कभी इंसान इतना बेबस होता है कि जीवन की राह पर गुज़रते हुए जब कभी अचानक वो किसी मोड़ पर अपने चेहरे पर आए (पड़े) आंसूओं को पोंछता या साफ करता है, तो उसका रुमाल उस पर दर्ज हुए निशां के ज़रिए चीख-चीख कर ख़ुद पर बीती ज़्यादती की गवाही 'पछतावे और अफ़सोस' के माध्यम से बयां करता है, उसके पास दूसरा कोई विकल्प नहीं होता।"

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10-09-2023

Rahul Khandelwal

Thursday, September 7, 2023

स्मृतियों के कुछ अवशेष आपकी परछाई बनकर आपका पीछा कभी नहीं छोड़ते।

["Our experiences, which later become memories, determine our consciousness to some extent."- Rahul ]
 

"आप स्मृतियों को लांघ कर कोसों दूर निकल आते है, एक लंबा सफ़र तय करने पर भी स्मृतियों के कुछ अवशेष आपकी परछाई बनकर आपका पीछा कभी नहीं छोड़ते, अंतिम साँस तक भी नहीं।"

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"टूटते हुए मानवीय संबंध और कुछ अनुभव इंसान के जीवन से ताउम्र के लिए उसका एक हिस्सा छीन लेने की क्षमता रखते है। वो हिस्सा हमेशा के लिए मृत हो जाता है, किसी दूसरे हिस्से से आप उसकी तृप्ति कभी नहीं कर सकते, चाह कर भी नहीं।"

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"गुज़रे हुए अतीत की छांप और जड़े इतनी गहरी होती है कि वो गुज़र रहे (मौजूदा) समय में आपकी बिना इजाज़त लिए कभी भी दस्तक देती है, आपके मन और मस्तिष्क में प्रवेश करती है और आपकी तमाम कोशिशों के बाद भी बीतती नहीं। सिवाए इसके कि आप बिना किसी दूसरे विकल्प के, बेबस और मजबूर होकर उन अनुभूतियों को महसूस करने के लिए सिर्फ़ बाध्य हो सकते है, और कुछ नहीं।"

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"इंसान की स्मृतियाँ उसकी मर्ज़ी की मोहताज नहीं होती। उनके समक्ष वो (व्यक्ति) सिर्फ़ एक निर्जीव पुतले के समान है, उस से अधिक और कुछ भी नहीं।"

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"स्मृतियाँ,

बारिश के बाद मिट्टी में जन्म लेने वाली अवांछित जड़ें जैसी होती है जिसके ना बीज बोयें जाते है, ना उनमें पानी दिया जाता है और ना खाद डाली जाती है।"

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07-06-2023

Rahul Khandelwal 

#akshar_byrahul

Tuesday, September 5, 2023

आपके सोचने और लगातार नए–नए प्रश्नों के जन्म लेने के पीछे के तमाम कारकों में सबसे महत्वपूर्ण कारक होता है, एक अच्छे शिक्षक का मौजूद होना।


द्रोणाचार्य ने अर्जुन से कहा था कि "लगता है तुम मेरे पास कुछ नहीं छोड़ोगे"। मैं  समझता हूं (ख़ासतौर से अपने लिए) कि विद्यार्थी को शिक्षक की ज़रूरत समय–समय पर पड़ती ही रहती है और शायद वो उनसे सब कुछ ले भी नहीं पाता।

खिड़की के इस पार इनसे ख़ूब सीखता हूं और हमेशा सीखना भी चाहता हूं। अच्छे शिक्षक की मौजूदगी हमें उन तमाम क़िस्सों और सवालों के बारे में सोचने पर मजबूर करती है जिन्हें हम उन चारदीवारी में रहकर सुन आते है और वापस आने के बाद उन सवालों के जवाब खोजते है (ये कला भी हर किसी में नहीं होती कि शिक्षक के द्वारा पढ़ाए जाने पर विद्यार्थी मजबूर हो सके नए–नए सवालों के बारे में सोचने के लिए)। और वो सवाल भी बेबुनियाद नहीं होते, उनका अपना महत्व होता है। आपके सोचने और लगातार नए–नए प्रश्नों के जन्म लेने के पीछे के तमाम कारकों में सबसे महत्वपूर्ण कारक होता है, एक अच्छे शिक्षक का मौजूद होना और उनका आपके साथ हमेशा खड़े रहना। 

#DedicatedToMyTeacher

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Rahul Khandelwal

#akshar_byrahul

पेड़ की टहनियां और पत्तियां कितनी भी ऊंची और हरी क्यों न हो, जड़ से नाता छूटते ही सूख जाती है।

 
जब कभी मैं मौखिक रूप में अपनी बात को नहीं कह पाता तो अपने शब्दों का सहारा ले लेता हूं। उसी के परिणाम के रूप में मेरी कलम से निकला एक छोटा-सा पत्र।

कुछ उलझनों से जूझ रहा था मैं तब, जब पहली बार आपके पास आया था जैसे किसी चौराहे पर खड़ा होकर मौजूदा रास्तों से भाग रहा था (हूं), जिनके निर्माण के पीछे मेरी कुछ गलतियों का हाथ था, तो कुछ समकालीन अवस्थाओं का भी।

"कभी–कभी मनुष्य के स्वभाव को बाहरी परिस्थितियां इस हद तक प्रभावित कर देती है कि जिसके चलते ऐसा लगता है मानो वो बाहर से कोई और हो तो भीतर से कोई दूसरा ही (और भीतर वाले को वो छोड़ना भी नहीं चाहता)। ऐसी स्थिति में वो 'बाहरी निर्मित रूप' जिसके निर्माण को वो चाहकर भी रोक ना सका और भीतर के अपने 'मूल रूप' के द्वंद्व में फंसकर रह जाता है। वो कोशिश करता है कि दोनों के बीच संतुलन स्थापित कर सकें, परंतु उसके द्वारा किए जा रहें प्रयासों को उस समय की परिस्थितियों के समक्ष झुकना पड़ता है, लेकिन वो हार नहीं मानता, प्रयासरत रहता है।"

"कई बार उलझनों के जन्म लेने के पीछे का कारण सिर्फ़ संबंधित व्यक्ति नहीं होता, कारण संभवतः कुछ और भी हो सकता है। हां, बस वो उस समय उसका पूरा भार और दोष अपने पर डाल लेता है ताकि तत्कालीन परिस्थितियों से छुटकारा पा सकें क्योंकि तब (उस वक्त) उसे कोई दूसरा विकल्प तलाशने से भी नहीं मिलता।"

मैंने कई बार कोशिश की कि उन सभी उलझनों को वार्ता के ज़रिए आपसे साझा कर सकूं, इसीलिए मौका देखकर दो–तीन दफा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से आपसे साझा भी किया। ऐसा नहीं था कि जवाब नहीं मिला, मैं खाली हाथ लौटा भी नहीं था। वो पाठ मुझे कंठस्थ थे जो आपसे मैंने सीखे थे और मैंने दी गई सीख की गांठ भी बांध ली थी।

"कई बार इंसान अपनी स्मृतियों को लांघ कर कोसों दूर निकल आता है, एक लंबा सफ़र तय करने पर भी स्मृतियों के कुछ अवशेष उसकी परछाई बनकर उसका पीछा कभी नहीं छोड़ते, अंतर्मन से सब कुछ मिटा देना सबके बस की बात भी नहीं।" इसीलिए समझदारी (और मैं नैतिकता भी इसी में समझता हूं) इसी में है कि वो अपने अतीत को स्वीकार कर आगे की यात्रा तय करें क्योंकि यहां कोई चौराहा नहीं है, सिर्फ आगे की ओर जाता हुआ एक ही रास्ता है।

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With the one who have taught me many lessons and from whom I aspire to learn more.

पेड़ की टहनियां और पत्तियां कितनी भी ऊंची और हरी क्यों न हो, जड़ से नाता छूटते ही सूख जाती है।

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19-03-23

Rahul Khandelwal

(Always your student)


Impalpable

I wish I could write the history of the inner lives of humans’ conditions— hidden motivations and deep-seated intentions. Life appears outsi...