जामिया गेट नंबर आठ से बाई तरफ़ मुड़ते है, तो सीधी सड़क सुखदेव विहार की ओर जाती है। प्रभात सर की क्लास जल्दी ही खत्म हो जाती है और संस्कृत की क्लास में अभी समय था तो सोचा सराय जुलैना में कोई कमरा ढूंढ आता हूं। सुबह करीब साढ़े दस का वक्त रहा होगा, मैं सुखदेव विहार की ओर जाने लगा और लाल बत्ती से दाहिनी ओर मुड़ गया, यह सड़क जुलैना की और जाती है। कहा जाता है कि इलाकों की तमाम खबरें वहां मौजूद दुकान वालों, ठेली वालों के पास अधिक होती है, तो मैंने जानकारी हासिल करना शुरू किया। यहां की गलियां बहुत संकरी बनी हुई है, उन्हीं में से एक गली को मैंने राह के तौर पर चुना जिसमे मौजूद एक फल वाला अपनी ठेली को संवार रहा था। बातचीत करने पर और मुझे नीचे से ऊपर निहारने के बाद उन्होंने मुझे शर्मा जी के मकान का पता दिया जो एक गली छोड़कर वहीं पर स्थित था। मैं बताए हुए पते पर पहुंचा और घर की डॉरबेल बजाई। घर में मौजूद मालकिन ने मुझे घर के पिछले भाग में स्थित एक कमरा दिखाया, फिर थोड़ी बातचीत का सिलसिला भी शुरू हुआ। मैं जामिया का स्टूडेंट हूं, ये मैं उन्हें बातों-बातों में बता चुका था।
“मैं एक कथावाचक हूं, भारत के तमाम शहरों में भगवदगीता का पाठ करती हूं। मेरा यूट्यूब चैनल भी है आप देख सकते है”, उन्होंने मुझसे कहा।
(सुनने में परिचय अगर भारी भरकम-सा लगे तो इंसान उसे बतलाने में देरी नहीं लगाता, वो बिना पूछे ही अपनी पहचान को आपसे साझा करता है। मनुष्य द्वारा बनाए गए जगत में इंसान से ज्यादा उसकी पहचान का महत्व होता है, हम इस ढांचे के इतने आदी हो गए है कि ठहरकर सोचते भी नहीं, ख़ैर।)
आगे वो कहने लगी, “हम पढ़ने वाले स्टूडेंट को ही यह कमरा देना चाहते है, जो शांत स्वभाव का हो। घर में मैं काफी सफ़ाई रखती हूं, आप देख भी रहे होंगे फर्श पर धूल नहीं है। यही दो-चार बातें है, जिनकी हम किरायदार से उम्मीद भी करते है कि वो इनका ध्यान रखें।"
मैं ये सब बातें सुनता रहा। यह बेहद ही स्वाभाविक है कि जब आप मकान खोजने निकलते है तो आपसे आपका नाम पूछा ही जाता है और इस सवाल में भी पूछने वाले की अधिक इच्छा आपका सरनेम जानने में होती है ताकि वो जल्द ही आपकी जाति और धर्म का निर्णय कर किसी भी प्रकार की दुविधा में ना रहे।
“मेरा नाम राहुल खंडेलवाल है”, मैंने कहा (उन्हें खंडेलवाल से मतलब था, यह मैं जानता था)।
“खंडेलवाल तो बनिए होते है और राजस्थान में अधिक होते है”, शर्मा जी आगे बात को बढ़ाने लगी (अस्मिताओं से जुड़े सवाल लोग आपसे डायरेक्ट नहीं करते, हालांकि वे जानना ज़रूर चाहते हैं, इसीलिए एक प्रकार की सुरक्षा का सहारा लेते हुए बात को घुमाकर पूछते है क्योंकि इस बात को वे भी जानते है कि बचाव करते हुए सवाल पूछने पर सामने से ख़ुद ही जवाब मिल जायेगा। उन्हें लगता है ऐसा करने से वे बच जाते है, लेकिन ये उनका भ्रम मात्र होता है)।
“आपने सही कहा लेकिन खंडेलवाल राजस्थान के अलावा अन्य जगहों पर भी रहते हैं जैसे पंजाब में, उत्तराखंड में और भी कई इलाकों में, वैसे मैं प्रजापति हूं”, उनकी बात का जवाब देते हुए मैंने कहा।
“अच्छा, चलो कोई बात नहीं। इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता, वैसे भी सभी हिंदू तो एक ही है”, मानो उन्होंने सांत्वना देते हुए मुझसे ये कहा हो। (कभी-कभी इंसान अपनी बात को इस तरह से कहता है कि उसे लगता है कि उसने कहकर भी कुछ नहीं कहा और सुनने वाले ने भी कुछ नहीं समझा। इस स्वभाव को कहने और सुनने वाले इतनी सहजता से स्वीकार करते है कि उन्हें मालूम ही नहीं पड़ता कि ऐसा करने से एक प्रकार के सामाजिक खांचे का निर्माण भी हो जाता है)।
बातचीत ख़त्म हो जाने के बाद मैं संस्कृत की क्लास के लिए सराय जुलैना से जामिया गेट नंबर आठ की ओर फिरसे लौटने लगा। क्लास शुरू होने में समय कम बचा था तो मैंने अपनी रफ़्तार को तेज़ किया कि तभी अचानक से अधिक तेज़ी से दौड़ता हुआ एक विचार मुझे घेरने लगा कि “हां, धूल शर्मा जी के घर के फर्श पर तो नहीं थी, लेकिन क्या उनके मन में भी नहीं थी? अअआ....शायद धूल उनके मन में थी।"
यही सब सोचते हुए और क्लास की ओर जाते हुए फिर मैंने अपनी रफ़्तार को और अधिक तेज़ कर लिया।
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20-09-23
Rahul Khandelwal
#Akshar_byRahul