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21-12-2021
Rahul Khandelwal
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Note:
1. The picture is taken from internet.
A Creative Writing Page -Rahul Khandelwal | मेरा अनुभव ही मेरा जीवन है और मेरे हर लेखन में ये दर्ज है।
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21-12-2021
Rahul Khandelwal
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Note:
1. The picture is taken from internet.
“लोगों के सिवा भी सामाजिक परिवेश में बहुत कुछ निहित होता है जो उस बनते-बिगड़ते परिवेश में कारक का काम करता है। महत्वपूर्ण बात (विडंबना भी कह सकते है) यह है कि जिस किसी समाज में रहने वाले लोग तमाम तरह के अनुभव और अवलोकन के आधार पर तमाम प्रकार की धारणाओं, दृष्टिकोणों की व्याख्या कर, उन्हें जन्म देते है; बाद में वहीं, उसी समाज में रहने वाले लोग ख़ुद भी इन सबसे इस क़दर प्रभावित हो जाते है कि अपने ही द्वारा किए गए सरलीकरण को अंतिम सत्य मानने के लिए बाध्य हो जाते है और ये भूल जाते है कि ये सब कृत्रिम है। सरलीकरण का आधार बहुसंख्यक ज़रूर होता है, लेकिन उसी को अंतिम सच मान लेना मूर्खता करने के समान है क्योंकि उसके आधार में सब कुछ या हर कोई शामिल नहीं होता।"
यही सब को लिखते-लिखते, उसे, अतीत में बीती उन घटनाओं ने घेर लिया जो उसके लेखन को बाकी लेखकों की तरह आधार प्रदान करती है। उसने गौर से ध्यान दिया तो बात और भी स्पष्ट होती चली गई, जो कुछ इस प्रकार थी और वो फिरसे सोचने लगा-
यह सब उसके लिए प्राकृतिक प्रक्रिया है कि जब वो किसी नए पड़ाव का हिस्सा बनता है, तो नए लोगों से भी मिलना होता है, ये ज़ाहिर-सी बात है। और उसी प्रक्रिया में समय गुज़रने के साथ, वो एक-दूसरे से परिचित होकर परत दर परत खुलना शुरू कर देता है। अपनी विशेषताओं से संबंधित जानकारियां साझा करते हुए कुछ लोग उन्हें अपनी “ताक़त और कमज़ोरी” के वर्गीकरण में बांटकर नहीं बताते या अगर अनजाने में बता भी देते है तो उन्हें यह उम्मीद नहीं होती कि इसका फ़ायदा भी उठाया जा सकता है। क्योंकि विशेषताओं का वर्गीकरण अगर आप नहीं करते है (या अगर अनजाने में कर भी देते है), तो समाज में रहने वाले लोग (ख़ासतौर से वे लोग, जो जानकारियां हासिल करते हुए, आपसे, उन्हें किसी दूसरे के साथ ना साझा करने का वायदा भी करते है) उनका वर्गीकरण जानबूझकर करते है और तदानुसार आपके साथ व्यवहार भी करते है। मनुष्य व्यवहार का एक कटु सत्य यह भी है। इसे स्वीकारे और सतर्क रहें।
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19-11-2023
Rahul Khandelwal
"जिन छोटे गांव और कस्बों को, वहां रहने वाले लोगों को हम छोटी निगाह से देखकर आंकते है और तरह-तरह की संज्ञाएं देते है, उन दूर-दराज स्थित गांव में जब कभी-भी जाता हूं तो लगता है पर्यावरण की सुरक्षा और उसके ख्याल को लेकर वहां रहने वाला समाज और लोग हमसे कई ज़्यादा अधिक सहज है और उससे जुड़ी गंभीर समस्याओं को हमसे बेहतर समझते है। मैंने कई बार देखा है और महसूस किया है कि गंभीर मुद्दों को लेकर ग्रामीण समाज अपने मन में कहीं दूर, भीतर, अपने अवचेतन मन में एक प्रकार के डर को जल्द ही स्थान दे देता है, जिसका जाने-अनजाने में सकारात्मक परिणाम ही होता है। इस तरह का व्यवहार हमें शहरों में रहने वाले लोगों में कम देखने को मिलता है। जिस प्रकार हम उन तमाम तरह के भेदभाव को सामने घटते हुए देखने के आदी इस हद तक हो गए है कि बस एक चुप्पी साधकर और शांत रहकर उसे स्वीकार लेते है, उसी प्रकार हम पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं को देखकर भी अपने मौन को दर्ज करने के सिवा और कुछ नहीं कर सकते। हम धीरे-धीरे 'मजबूर होते हुए मनुष्यों की श्रृंखला' का हिस्सा बनते जा रहे है। यह बेहद दुखद है।"
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14-11-2023
Rahul Khandelwal
#Akshar_byRahul
उसका इतिहास, राजनीति, भूगोल, धर्म और समाज
उसके अपने
और नज़दीक के
दस मकानों तक सीमित है
जहां उसने
अपने और औरों के साथ
प्रेम, आदर और सहज भाव से
रहना सीखा है
इस उम्र में भी
वो अपने “इस छोटे-से देश” में
जिस किसी को जानता(ती) है
हर किसी के प्रति
ज़िम्मेदारी का भाव रखता है
वो अपने समर्पण को
मोल-भाव कर
तराज़ू में नहीं तोलता(ती)
व्यसकों की तरह
उसे मालूम नहीं था
कि उसके अनुसार परिभाषित देश को
उसमें रहने वाले
बेकसूर उसके अपनों को
युद्ध के दौरान
जाने या अनजाने में
तबाह किया जा सकता है
और जब वो असंख्य लाशों के बीच
अपनी मां, पिता, भाई, बहन और दादी के
ना होने का कारण पूछता(ती) है
तो जवाब में
थमा दिया जाता है
उसके नन्हें हाथों में
देश का इतिहास, राजनीति, भूगोल, धर्म और समाज
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05-11-23
Rahul Khandelwal
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Published in "KRITYA Poetry Journals." Click on this link and scroll down to the bottom.
Notes:
1. The poem is dedicated to all those innocent children of both sides who are dying and losing their loved ones in Israel-Palestine conflict.
2. The picture is taken from internet.
I wish I could write the history of the inner lives of humans’ conditions— hidden motivations and deep-seated intentions. Life appears outsi...