हिंद रजब का डरना प्राकृतिक था
उस हर एक दूसरे व्यक्ति की तरह ही
जो गर उन परिस्थितियों में होता
तो डर का ही चुनाव करता बिना झिझके
उसकी मदद से भरी गुहार और आवाज़ को सुनने के बावजूद
अपने हित के खो जाने के डर की वजह से मदद ना करना
चारों ओर गूंजती पुकार को अनसुना कर फिरसे डरना
किसी भी रूप में प्राकृतिक तो नहीं था
हम खो रहे है हर दिन
अंतःकरण से आने वाली आवाज़ को सुनने की क्षमता
कि घटनाओं के पीछे छिपे संदर्भ असल है या नकली
और कौनसे कारक प्राकृतिक है और कौनसे कृत्रिम
इन्हें पहचानने की दृष्टि अब हममें शेष नहीं
मौजूदा समय की स्थियियां इस बात की गवाह है
कि इंसान गुज़रते हुए समय के साथ बुज़दिल हो रहा है
कि उसके लिए अब सही और गलत का निर्णय
सिर्फ उसके हित और अहित पर निर्भर करता है
असल में क्या सही है और क्या गलत
क्या सत्य है और क्या असत्य, इस पर नहीं
दुखद है ये कि क्षीण हो रही है क्षमता
अंतःकरण को सुनने की
वंचित हो रहा है मनुष्य
अपनी ही अंतरात्मा की आवाज़ से
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21-02-2024
Rahul Khandelwal
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Note: This poem is dedicated to six years old Hind Rajab who lost her life during Israel-Palestine conflict.