Wednesday, February 21, 2024

अविनाशी अंतरात्मा



आपकी अंतरात्मा के अस्तित्व का संबंध आपके जीवन से है, विध्वंसता से नहीं।


उन्होंने कई शहर तबाह किए

नहीं बख्शा हर उम्र के बेकसूरों को भी

मलबे में तब्दील कर दी गई

कई इमारतें और इबादत के स्थल


लेकिन नहीं विध्वंस कर पाई उनकी नफ़रत

मेरी अविनाशी अंतरात्मा और आस्था को

जिसके अस्तित्व का संबंध मेरे जीवन से है

उनके अहंकार से नहीं

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01-02-2024

Rahul Khandelwal 

हिंद रजब


हिंद रजब का डरना प्राकृतिक था

उस हर एक दूसरे व्यक्ति की तरह ही

जो गर उन परिस्थितियों में होता

तो डर का ही चुनाव करता बिना झिझके


उसकी मदद से भरी गुहार और आवाज़ को सुनने के बावजूद

अपने हित के खो जाने के डर की वजह से मदद ना करना

चारों ओर गूंजती पुकार को अनसुना कर फिरसे डरना

किसी भी रूप में प्राकृतिक तो नहीं था


हम खो रहे है हर दिन

अंतःकरण से आने वाली आवाज़ को सुनने की क्षमता

कि घटनाओं के पीछे छिपे संदर्भ असल है या नकली

और कौनसे कारक प्राकृतिक है और कौनसे कृत्रिम

इन्हें पहचानने की दृष्टि अब हममें शेष नहीं


मौजूदा समय की स्थियियां इस बात की गवाह है

कि इंसान गुज़रते हुए समय के साथ बुज़दिल हो रहा है

कि उसके लिए अब सही और गलत का निर्णय

सिर्फ उसके हित और अहित पर निर्भर करता है

असल में क्या सही है और क्या गलत

क्या सत्य है और क्या असत्य, इस पर नहीं


दुखद है ये कि क्षीण हो रही है क्षमता

अंतःकरण को सुनने की

वंचित हो रहा है मनुष्य

अपनी ही अंतरात्मा की आवाज़ से

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21-02-2024

Rahul Khandelwal

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Published in "KRITYA Poetry Journals." Click on this link and scroll down to the bottom.


Note: This poem is dedicated to six years old Hind Rajab who lost her life during Israel-Palestine conflict.

Friday, February 9, 2024

क्या आपकी चेतना का निर्माण आप स्वयं करते है?


क्या आपने कभी उन कारकों पर ध्यान दिया है जिनकी वजह से आपकी चेतना का निर्माण होता है और तत्पश्चात् आप विभिन्न विषयों पर अपनी राय व्यक्त करते है और अलग-अलग विकल्पों के बीच से किसी एक का चुनाव करते है?

"बाहरी और भीतरी 'मैं' के बीच के वाद-विवाद की उलझनों में फंसा मनुष्य क्या इस अनंत काल तक चलने वाली प्रक्रिया से बाहर आ सकता है कभी? एक व्यवहारिकरण पर ज़ोर देता है, तो दूसरा इस कृत्रिम व्यवहार के बीच व्याप्त 'सत्य' और 'असलियत' की ओर चलने को बाध्य करता है। क्या इन दोनों के बीच की बहस में से, हम असल की पहचान का चुनाव कर पाएंगे कभी? या हम अभिनय करने के इतने आदी हो गए है कि असल को जानते हुए भी नकार देना चाहते है उस 'सत्य' को, जिसकी समाप्ति के लिए हम हर दिन कृत्रिमताओं पर आधारित अनावश्यक संघर्ष करते चले जा रहे है?"

यह एक ऐसी रणभूमि है, जो सदैव अदृश्य रहती है।

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09-02-2024

Rahul Khandelwal 

Thursday, February 1, 2024

"लेकिन नहीं विध्वंस कर पाई उनकी नफ़रत, मेरी अविनाशी अंतरात्मा और आस्था को, जिसके अस्तित्व का संबंध मेरे जीवन से है, उनके अहंकार से नहीं।"

 

स्थानों का महत्व इस बात में भी निहित होता है कि कुछ जगहें आपको भीतर की ओर देखने को मजबूर करती है। कुछ दार्शनिकों ने इसे यह कहकर भी खारिज किया है कि स्वः की अनुभूति के लिए जगहों के चुनाव को महज़ किसी शर्त के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है कयोंकि इसका अधिक संबंध आपके अंतर्मन से है, जिसे कुछ हद तक और कुछ वजहों के चलते स्वीकारा जा सकता है।

लेकिन फिर आप इसे कैसे स्पष्ट करेंगे कि कुछ विशेष स्थानों पर पहुंचने के बाद, किसी सत्ता के सामने सजदा करते हुए जब आप अपनी आंखों को बंद करते है, तो आप भीतर से यह महसूस करते है कि आपने दो कदम 'सत्य' की ओर बढ़ाएं है? साथ ही सवाल यह भी उठ खड़ा होता है कि क्या आप वाकई में किसी सत्ता के सामने झुकते है या असल में आप अपनी अंतरात्मा का सामना कर रहे होते है? क्या आप इस बात का दावा कर सकते है कि सत्य की अनुभूति का होना और जगहों का, आपस में कोई वास्ता नहीं है, उन दोनों का आपसी संबंध बेबुनियाद है? क्या इस सब के पीछे के कारणों में सांस्कृतिक भूगोल के अलावा भी अन्य कोई कारण है या दूसरा कोई दार्शनिक आधार?

किसी के लिए एक ऐसे शहर के बीच खड़ी इमारत भी इबादत का ज़रिया बन सकती है, जिसे इतिहास में कही तबाह किया गया हो। क्या तबाही आस्थाओं को भी विध्वंस कर सकती है? क्या किसी की आस्था को किसी के लिए पूरी तरीके से तबाह कर पाना मुमकिन है?


उन्होंने कई शहर तबाह किए,

नहीं बख्शा हर उम्र के बेकसूरों को भी,

मलबे में तब्दील कर दी गई,

कई इमारतें और इबादत के स्थल।


लेकिन नहीं विध्वंस कर पाई उनकी नफ़रत,

मेरी अविनाशी अंतरात्मा और आस्था को,

जिसके अस्तित्व का संबंध मेरे जीवन से है,

उनके अहंकार से नहीं।।

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01-02-2024

Rahul Khandelwal 

Impalpable

I wish I could write the history of the inner lives of humans’ conditions— hidden motivations and deep-seated intentions. Life appears outsi...