छुट्टी वाले दिन जब कभी मासी के घर जाना होता, तो तीनों पहर का खाना खा चुकने के बाद, अक्सर उनके पास बैठ जाया करता था। वे मुझे अपने अतीत से जुड़े पारिवारिक किस्से कहानियां सुनाया करती थी, जिसमें उनका सुख-दुःख, दोनों शामिल होते थे। साठ की उम्र पार कर चुकने के बाद, इंसान की बातचीत में 'मानवीय जीवन से जुड़ा दर्शन', बिना किसी की इजाज़त के स्थान ले लेता है। ऐसी स्थिति में आप कई बार, गहरा अर्थ लिए हुए कई-सी बातों का सामना करते है और सोचने पर विवश होते है। व्यसकों के पास बैठने से उन्हें भी यह महसूस होता है कि उनकी मन की तहों के नीचे दबी तमाम बातों को सुनने के लिए अभी भी कोई ना कोई उनके आस-पास मौजूद है। शायद वे भी राह देखते होंगे कि कब उन्हें सुनने वाला उनकी इन बातों को सुनने के लिए आएगा।
मेरे व्यवहार ने ऐसे लोगों की संगत को स्वतः ही स्वीकार किया है, जिनकी हर दूसरी बात अपने साथ, कोई ना कोई, इंसान के जीवन के लिए एक नया पाठ लिए होती है। हम सभी में कुछ न कुछ ऐसा भी होता है, जिसके चलते हम बिना जाने बूझे और पूर्व नियोजन के अलग-अलग आदतों का चयन करते है। यह प्रक्रिया इतनी ख़ामोशी से अपना काम करती है कि आपको भनक तक नहीं होती।
कुछ बातें हमें अक्सर याद रह जाया करती है, ख़ासतौर से वे सब, जो हमें मनुष्य के जीवन से जुड़े किसी आयाम पर सोचने को विवश करती है। मैं मासी की कही हुई वह बात कभी नहीं भूल सकता।
हर किसी के लिए दुःख की परिभाषाएं अलग-अलग हो सकती है। यह इस पर भी निर्भर करता है कि आपका परिवेश किस तरह का है और आप किस तरह के वातावरण में पले-बढ़े है, जिसके चलते आपकी चेतना का निर्माण हुआ है और तत्पश्चात् घटनाएं आपको किसी एक तरीके से प्रभावित करती है; चूंकि हर किसी का परिवेश एक-सा नहीं होता है, इसीलिए सबकी चेतना भी एक-सी नहीं होती और फलस्वरूप इस सब का प्रभाव भी सब पर एक-सा नहीं पड़ता। शायद मासी के लिए वहीं सबसे बड़ा दुःख था, जिसे याद कर उस दिन उनकी आंखें नम हो गई थी और फिर उन्होंने कहा था कि "हमने अपने परिवार को बचाए रखने की बहुत कोशिश की, लेकिन आखिरकार वो बिखर ही गया। परिवार के टूट जाने का दुःख बहुत बड़ा होता है बेटा।" मैं उनकी आवाज़ में और नम आंखों में छिपे दर्द को महसूस कर सकता था, हां लेकिन उनके जितना नहीं। शायद वो दुःख उनके लिए सबसे बड़ा दुःख था।
अतीत में गुज़री यह बात और घटना आज फिर मुझ तक लौट आई है। होली की छुट्टियों में घर गया हुआ था। त्योहार समापन पर, लोगों का आपस में मिलना जुलना भी होता है; चूंकि करीबी रिश्तेदार आस पास ही रहते है, तो शाम को बैठक लग जाया करती है। कुछ अवसर शायद इसीलिए भी होते है कि वो लोगों को उनके रिश्ते याद दिला सकें।
हमें याद रखना चाहिए कि घर को घर बनाए रखने में घर के सभी सदस्यों का हाथ होता है; शादी के बाद कुछ सदस्यों के घर बदल जाया करते है, लेकिन वो अपनी सदस्यता कभी नहीं छोड़ते क्योंकि वे उन सबके बीच अपने होने की भूमिका को कभी भूला नहीं पाते है। आपके प्रति ज़िम्मेदारी का भाव भी वही रखता है जो आपको अपना मानता है। जब बुआ घर आती है तो इस भूमिका का हिस्सा बन जाया करती है। दादी भी इस बात को समझती और जानती है, तो उन्हें बुआ के घर पर आने के बाद, उनसे एक प्रकार की उम्मीद भी बंधी रहती है कि अगर छोटी-मोटी बातों पर उनके साथ घर में कुछ भी अन्याय हुआ है, तो उनकी बेटी आकर उन्हें न्याय दिलाएगी। ये सब भी परिवारों के बने रहने की प्रक्रिया का एक हिस्सा होता है।
गांव में आज मुश्किल ही कोई परिवार बचा होगा जो एकजुट होकर रह रहा है, सभी संयुक्त परिवार एकल में तब्दील हो चुके है, उस दिन बुआ ने इसे होली वाले दिन याद भी दिलाया। दादी कभी नहीं चाहती थी कि उनका परिवार औरों की भांति बिखर जाए। इस सब के पीछे के कई सारे कारणों में सबसे बड़ा कारण यह भी है कि अपने समय में दादी के सामने यह एक प्रकार की चुनौती भी थी कि उन्होंने अपने मायके में रहकर तत्कालीन समाज को यह दिखलाने का प्रयास किया था कि एक अकेली औरत भी अपने परिवार को एक-साथ लेकर चल सकती है।
मेरे ज़हन में यह बात 'याद और चिंता' की तरह बनी रहती है, चिंता इसलिए कि क्या हम रुककर कभी सोचते भी है इस सब के बारे में? कुछ सामाजिक और पारिवारिक बदलाव ख़ामोशी से पृष्ठभूमि में रहकर अपना काम करते रहते है; आप उनके कारणों को एक प्रकार की समुद्र में होने वाली हरक़त समझकर उसके ऊपरी सतह पर होते बदलावों को ही देखते रहते है, और नकार देते है सतह के नीचे दूर गहराइयों में और भी तरह के होने वाले बदलावों और हरकतों को।
आज हम "टेकन फॉर ग्रांटेड" से व्याप्त वातावरण में रह रहे है, जहां हम अनजाने में (unknowingly) वे सब भी करते चले जा रहे है, जिसकी इजाज़त अभी तो हमें हमारी उम्र दे रही है क्योंकि हमारे जीवन का ऐतिहासिक काल अभी छोटा है। लेकिन जैसे-जैसे इंसान के जीवन के ऐतिहासिक काल की समय सीमा बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे उसके जीवन में पछतावों का ढ़ेर लगता रहता है। तब उसे उसकी उम्र की गति भी आगे की ओर तेज़ बढ़ती हुई दिखालाई पड़ती है और उससे भी अधिक तेज़ दिखलाई पड़ता है उसे- "उसका पीछा करता हुआ, उसका ख़ुद का अपना इतिहास।"
ख़ैर। मासी, जिसे तमाम कोशिशों के बाद भी बचा नहीं सकी, दादी उसे खोना नहीं चाहती है। अब मासी के मन में खेद है, और दादी के, डर।
____________________
31-03-2024
Rahul Khandelwal
Note: तस्वीर दादी की है।