यूं तो कुछ शहरों को छोटी उम्र में देखा ही है जिसकी फेहरिस्त में दिल्ली अपनी कुछ लोकप्रिय जगहों के साथ शामिल है लेकिन एक व्यस्क की उम्र पार करने के बाद पुरानी दिल्ली का पहला दौरा मैंने 2017 में किया था, तभी से मानो इस शहर ने बार-बार पुकार लगाकर बुलाया है। गत सात वर्षों में मैंने करीब-करीब दस से बारह बार इस शहर को नज़दीक से देखा है। बहुत-सी मौजूदा चीजों में से यहां बनी इमारतें अधिक आकर्षित करती है। कई-सी इमारतें घरों का सूचक होती है जिसमें खुली, लंबी और चौड़ी बालकनियां आपको देखने को मिल जायेंगी। चूंकि कई से मकान और इमारतें सौ से भी अधिक साल पुरानी है, इसीलिए आपको इनकी बनावट में अपने अंतिम दिनों के मध्यकालीन भारतीय वास्तुकला से जुड़े हुए कुछ अवशेषों की झलक दिखलाई पड़ती है। विभाजन से पहले भारतीय समाज से जुड़े कई सारे किस्से कहानियों जिनमें तत्कालीन गांव और शहरों में बने मोहल्लों, गली-गलियारों, बाज़ार से जुड़े विवरणों को अलग-अलग दृष्टिकोणों से कई सारे इतिहासकारों, हिंदी और अंग्रेज़ी के लेखकों ने अपने लेखन में जगह दी है। इन सभी को पढ़ते वक्त हमारा दिमाग कल्पना की सहायता से जिन तस्वीरों को गढ़कर एक छोटी दुनिया का निर्माण करता है, उसी के कई सारे हिस्से परछाई के रूप में यहां हुबहू दिखलाई पड़ते है, कहीं कहीं पर आधुनिकता के रंगों के साथ।
गुज़रते हुए समय के साथ बीत रही दुनिया, बहुत-से अवशेष, बीत चुके समय से ग्रहण कर आगे की ओर अपने साथ चल रही होती है। उदाहरण के लिए अगर कहे- तो हम देखते है कि चावड़ी बाज़ार और पुरानी दिल्ली में बने हुए बड़े बाज़ारों में एक बड़ा श्रमिक वर्ग सामान ढोने के काम में लगा हुआ है जिसके लिए वो हाथ-गाड़ी का इस्तेमाल करते है। उनसे बात करने पर पता चलता है कि यहां पर ये काम इसी तरीके से पिछले कई सौ सालों से हो रहा है। इनमें इस एक समानता के अलावा एक सामान्य तत्व यह भी है कि ये सभी श्रमिक हाथ-गाड़ी को चलाते वक्त एक ही प्रकार से ऊंची आवाज़ में सामने वाले को हटने के लिए संदेश देते है- "आगे बढ़ते रहिए भैय्या", "चलते रहो भाई", जो इन बाज़ारो को कई से बाज़ार से अलग बनाता है।
लोहे का काम और उस से बने उपकरण जिनका इस्तेमाल खेतों में किसान द्वारा होता है, पीतल से बनी वस्तुएं जिन्हें पूजा और धार्मिक संबंधित कार्यों के लिए उपयोग में लाया जाता है, स्कूल और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए पुरानी और नई किताबें, धार्मिक पुस्तक, शादी के लिए कार्ड, हार्डवेयर संबंधित आइटम्स- इन सभी की बड़ी दुकानें इन बाज़ारों में मौजूद है। और साथ में खाने-पीने के लिए बीच-बीच में आती सैकड़ों छोटी-बड़ी दुकानें जिनमें कुछ स्थाई तो कई ऐसी है जो लेन में अलग-अलग नुक्कड़ों पर ही बनी हुई है। कुछ इतनी छोटी है लेकिन उतनी ही मशहूर और पुरानी कि शादी के लिए शॉपिंग करने आया हुआ पूरा परिवार खरीदारी कर इन दुकानों पर बने अलग-अलग स्वादिष्ट पकवानों का ज़ायका लिए बिना वापस घर को नहीं लौटना चाहता।
पुराने शहर अपने अनोखे किस्म की बनावट के साथ, वहां के मोहल्ले और उसकी गालियां; उनमें मौजूद बाज़ार, वहां की हलचल और दूर-दूर से खरीदारी करने आए हुए लोगों के चेहरों पर गहराई से उभर आती उत्सुकता जिसे स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है और जो आम समय और दैनिक चर्याओं में अमल में ला रहे उनके व्यवहार से भिन्न होती है। ऐसी यात्राओं से जुड़े दौरे विषयों के प्रति लोगों की समझ को बेहतर विकसित करने में मदद करते है। हम कई-से नए दृष्टिकोणों से इन्हें देख सकते है, लेकिन फिर भी कुछ तो ऐसा रह ही जाता है जो इतिहास की पुरानी समय रेखा से गुज़रता हुआ मौजूदा समय में भी रिसता हुआ चला आ रहा है। हां! अब तक भी।
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23-09-2024
Rahul Khandelwal